कविता

लड़की हुई है!

 

जिंदगी के घाव
जब दर्द देते हैं
तो मरहमपट्टी
भी चुभने लगती है
चोटों के निशान
जिंदगी के भयावह
उतार चढ़ाव
फिर भी जीना है
संकरे रास्तों पर चल
अपना सर्वस्व समर्पित करके
कुंठा और तपिश को होंठों पर रख
मुंह से निकल ही पड़ा
स्त्री के
“अरे लड़की हुई !!!”
आखिर क्यों ?
सुनकर इतना सा
सवाल दाग दिया अदृश्य ने
सरहद पर गोली बारूद की भांति
स्त्री होने के नाते कितना जायज है
“स्त्री को स्त्री होने पर प्रश्न?”
शायद वो नहीं चाहती
कोई गुजरे दुबारा
यातनाओं से
समाज दोगला
नि:संदेह

प्रवीण माटी

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733