ग़ज़ल : यह कौन मेरी राह से काँटे हटा गया
यह कौन मेरी राह से काँटे हटा गया
कदमों के तले कौन भला दिल बिछा गया।
ये किसकी सदा है जो दुआ सी कुबूल है
ये कौन दिल में प्यार की शमा जला गया।
लिपटी है मेरे कदमों से कोई तो नर्म शय
ये अब कौन मेरी राहें गुलों से सजा गया।
एक रोज हम मिलेंगे यह ख्वाब ही सही
ख्वाबोंकी मुलाकात में हंसना सिखा गया।
क्या और उससे मांगू क्या बाकी रह गया
सपनों का सौदागर दाव दिल लगा गया।
सोई थी कब से जानिब चाहत की आरजू
छूकर मेरे मनको वह मुझको जगा गया।
— पावनी जानिब सीतापुर