प्रेम की गंगा
जब-जब छाती है हरियाली,
झूमके सावन आता है।
सरसाते हैं सरगम के सुर,
मौसम गीत सुनाता है॥
सावन की इस मधुऋतु में ही,
मिली थी हमको आज़ादी।
पंद्रह अगस्त को लाल किले से,
गूंजी थी जय-घोष से वादी॥
हिंसा की तलवार कटी थी,
सत्य-प्रेम के वारों से।
भारत-भूमि हर्षाई थी,
जय हिन्द के शुभ नारों से॥
बापू ने छेड़ी थी उस दिन,
मधुर सुरों में मीठी तान।
नेहरु ने ली क़सम देश की,
वीरों ने गाए जय-गान॥
लहर-लहर लहराया तिरंगा,
अंबर ने बरसाए फूल।
धरती सुख से मुस्काई थी,
निकल गए थे उसके शूल॥
सूर्य-किरण में चमक अनोखी,
एक बार फिर आई थी।
चंदा की शीतलता में भी,
महक प्रेम की आई थी॥
आज पुनः सावन की झड़ी है,
लहराया है पुनः तिरंगा।
मन में उमड़े गीत खुशी के,
लहराई है प्रेम की गंगा॥
आजादी की बहत्तरवीं सालगिरह पर प्रेम के गलियारों से गुजरते हुए प्रेम की गंगा बहाएं, उसमें जी भरकर नहाएं, ताकि प्रेम का सागर लहरा सके.