मिलनी थी पावन आजादी
मिलनी थी पावन आजादी, कुछ लोंगों ने पाप किया,
राजा बनने की चाहत में, भारत के संग घात किया।
उत्सव जहाँ मनाना था, आजादी मिल जाने की,
रक्त बहा नालियों में, खुशियों पर आघात किया।।
बेबस और लाचार की लाशों को खाया तब गिद्धों नें,
सत्ता का ही खेल रचा था राजनीति के गिद्धों नें।
प्यास बुझाई जब भारत नें लाशों से पटे सरोवर में,
दावत खूब उड़ाई थी तब राजनीति के गिद्धों नें।।
जिन्ना और जवाहर ने क्या खूब प्रपंच रचाया था,
गांधी का लेकर सहारा जनता को भरमाया था।
बटवारे की चाहत में कट गई लाखों-लाखों की मूडी,
जाने कितनी मातृ शक्ति नें इज्जत प्राण गवायाँ था।।
भारत के दो टुकड़े कर जिन्ना नेहरू हर्षाये थे,
राजा बनने की चाहत में भारत-पाक बनाये थे।
गली-गली में लुटी थी इज्जत ना जाने कितनों की
बैठ के गांधी मस्जिद में, हिन्दू को मरवाए थे
।।प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7978869045