सत्ता की बेचैन कहानी लिखता हूँ
सत्ता की बेचैन कहानी लिखता हूँ,
जो मिटा सके इनकी शैतानी लिखता हूँ।
हिन्द बाग की कलियों को जो मसल रहे,
उन असुरों की बेखौफ कहानी लिखता हूँ।।
वादों सौगातों के बीच छूट रही,
आतंकी को सेना अपनी कूट रही।
प्राण गवायाँ सरहद पर फिर सैनिक नें,
उनके लिए जो इनका पैसा लूट रही।।
सरहद से मातम संदेसा आया है,
माता तेरे लाल नें प्राण गवायाँ है।
सपने बिखर गए हैं जिस चौखट के,
क्यों जाकर नहीं किसी ने उसे उठाया है।।
मुझे शिकायत नेता से थी क्या रहेगी,
चौथा स्तम्भ इस घटना पर क्या कहेगी।
छद्म भेषियों से रण में जो खेत रहा,
बरसा उनपर पत्थर माँ अब क्या कहेगी।।
।।प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7978869045