सिंहों के हाँथ बंधें
गिरती है सीमा पर लाशें,
…………….चैन से हम तुम सोतें हैं।
भूख से व्याकुल बच्चे उस दिन,
…………….सैनिक के घर रोते हैं।।
हम शहीद कह के उनको,
……………..काम आपना कर लेते।
कोई उन माओं से पूछो,
…………….लाल जो अपना खोते हैं।।
बाबा की लाठी बनकर,
……………..जिस बच्चे को चलाना था।
बूढ़े होते बापू का, जिसको-
………………सहारा बनना था।।
आज उठाकर लायें हैं,
………………कंधे पर उसको चार जवान।
चला जलने बापू उसको,
………………जिसके हाँथ ही जलना था।।
सिसक रही है जो पगली,
……………….उसे साजन संग चहकना था।
आया है सांवरियाँ उसका,
………………..आज उसे तो बहकाना था।।
बिलख रही है, सुबक रही है,
………………..पीट रही वो सर अपना।
प्रेम गली में साजन संग,
………………..आज उसे तो भटकन था।।
ऐसे में कुछ गद्दारों नें,
………………आज आवाज उठाया है।
मजहब के उन्मादी नें,
……………….गीत हिन्द ठुकराया है।।
नहीं तिरंगा लहरेगा,
……………….मस्जिद के प्राचीरों से।
जयचंदों की सेना ने,
………………सहमति शीश झुकाया है।।
शर्म तनिक ना आई उनको,
………………गद्दारी जो कर बैठे।
एक अकेले सैनिक पर जी,
……………….चार चपाटें जड़ बैठे।।
ध्यान खूब है शृगालों को,
……………….सिंहों के हाँथ बंधें।
इसी लिए पत्थारबजों नें,
………………..कर्म नाजायज कर बैठे।।
।।प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7537807761