दौर
महाकवि नीरज जी को दिल से नमन
💐💐💐💐💐💐💐💐💐
वो दौर भी अजीब था ,
खिले खिले थे फूल से ।
ये दौर भी अजब सा है ,
मीत वो दूर से मिले ।
कारवां थम सा गया
वो मस्तियों के दौर से ।
बिखर रही थी खुशबुएं
मचल रहे अरमान थे ।
जिंदगी के मोड़ में कुछ
ख़्वाब अजीब से पले ।
गमगीन है दिल मेरा ,
जाने क्यों इस दौर से ।
दिल का गुबार मचल रहा ,
कहने को कुछ गौर से ।
आंधियों की क्या बिसात ,
हम भी तो तूफान हैं ।
न टूटने की शाख से खाई है
हमने भी कसम,
वो दौर भी अजीब था ,
ये दौर भी अजब सा है
वो शोखियाँ गुलाब की ,
वो लरजती सी शाम थी
हुस्न आफताब था
चाँद के आगाज से ।
वो दौर भी गुजर गया ,
ये दौर भी गुजर जाएगा
घोल कर तो देखना
फिजाओं में रंग बहार के ,
तोल कर तो देखना
प्यार को गुलाब से ।
चुभन भूल जाओगे ,
खुशबूओं के सामने ,
आएगी जो याद
फिर से आफताब की ।
वो दौर भी गुजर गया ,
ये दौर भी गुजर जाएगा ,
रह जायेगा फिजा में
नाम बस शबाब का ।
जिंदगी की चाल को
कौन समझ पाया है ,
दिल के किसी राज को
दफन करके ही सुकून पाया है ।
वो लोग कुछ और थे ,
ये लोग भी अजीब हैं ।
प्यार के नाम पर बिक जाते हैं
हजारों फूल भी ,
दामन में बस इश्क़ के
काँटों का हसीन साया है ।
वो दौर भी गुजर गया ,
ये दौर भी गुजर जाएगा
वक़्त ने इश्क़ पर बस जुल्म ढाया है ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़