महामानव अटल जी के प्रति
अटलबिहारी दिव्य थे, सचमुच ही थे ख़ास !
अद्भुत थे,दैदीप्य थे, ऊंचे ज्यों आकाश !!
कर्मवीर,सचमुच अटल, था चोखा अंदाज़ !
हर दिल,हर मस्तिष्क पर, किया जिन्होंने राज !!
मित्रों के जो मित्र थे, भारत मां के लाल !
ऐसे मानव को कभी, क्या निगलेगा काल !!
थे सच में सरताज वो , थे सबका विश्वास !
हर युग में,हर काल में, बिखराया था हास !!
मर्यादा को साधकर, दिया नया इक रूप !
राजनीति कर दी सुखद, ज्यों जाड़े की धूप !!
गये नहीं ,वो हैं यहीं, अमर हो गया नाम !
अटलबिहारी बन गये, मानो तीरथ धाम !!
करते हैं उनको विदा, भर नैनों में नीर !
हम ही समझें,हो रही, जो हम सबको पीर !!
— प्रो. शरद नारायण खरे