खुद में ही वह सब कुछ है
मैं दुविधा में, क्या लिख दूँ, खुद में ही वह सब कुछ है,
कौन सी दे दूँ मैं उपमायें, खुद में ही वह सब कुछ है।
कर्मों से अपने बतलाया , वह तांडव नर्तन है शिव का,
बढ़ते जीवन से दर्शाया, खुद में ही वह सब कुछ है।।
यम से जिसने आँख मिलाकर जीना हमें सिखाया है,
डरा तनिक ना अमरीका से लड़ना हमें सिखाया है।
चले छोड़कर आज हमें शून्य हुये हैं बिन उनके,
अटल-अटल थे अटल रहेंगे सत्य हमें सिखलाया है।।
वह हिन्दू थे हिन्दू का सम्मान सदा ही बढ़ाया,
मजहब का उन्मादी उनको कभी नहीं था भाया।
चाह यही थी प्रेम यहाँ पुष्पित हो घर आँगन में,
इसी लिए जन-जन का साथी बनकर कदम बढ़ाया है।।
।।प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7978869045