मुक्तक
भरे जो मेघ नैनों के, बरसना भी जरूरी था
गिले शिकवे दिलों में थे, गरजना भी जरूरी था
सहजता से मिले कुछ तो, कदर उसकी नहीं होती
अहमियत एक दूजे की, समझना भी जरूरी था
भरे जो मेघ नैनों के, बरसना भी जरूरी था
गिले शिकवे दिलों में थे, गरजना भी जरूरी था
सहजता से मिले कुछ तो, कदर उसकी नहीं होती
अहमियत एक दूजे की, समझना भी जरूरी था
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बहुत खूब. हार्दिक बधाई .
प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आदरणीय🙏
वाह ! बहुत सुंदर !
बहुत बहुत धन्यवाद.