वर्षा ऋतु आयी है
वर्षा ऋतु आयी है
सबका जी डराई है
कहीं- कहीं सूखा का डर
कही – कही है बाढ़ का भय
नदी तालाब उफन रही है
बादल उमड़ घुमड़ रहें है
चारो तरफ शैलाब भरा है
चारों तरफ हाहाकार मचा है
गाय -भैसं- भेड़ -बकरी
कही बहाव मे बह रहे है
काम कर रहे किसानों की
व्यथा कही न जा सकती
उनके दिल बाढ़ को लेकर
तुफान सी मची हुई
पेड़ पौधे हरियाली लिए
झुम -झुम कर गा रहे है
कही बहाव मे बह रहे है
गली-बाजार -नाली- चौराहे
जहाँ देखो सब पानी है
विधाता की ये कैसी माया
दिन दिखाये कैसी काया
कहाँ गया वो द्वापर त्रेता
जहा समय पर वर्षा होती
रहम करो भगवान जरा तुम
जीने का आधार करो!
— बिजया लक्ष्मी