सूरज के सात फेरे
विज्ञान कथा
”सूरज, मैं तेरे पास आ रहा हूं” मिशन ”पार्कर सोलर प्रोब” ने कहा, जो अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का सूरज पर अपने पहले मिशन का मुख्य हिस्सा था.
”हुम्म्म…, तू मेरे पास आएगा, मगर कैसे?” सूरज ने उसकी गुस्ताखी पर तमतमाते हुए कहा- ”शायद तुझे मेरी ऊर्जा और गर्मी की ताकत का तनिक भी अंदाजा नहीं है!”
”मुझे तो क्या, एक चींटी तक को तेरी ऊर्जा और गर्मी का पूरा अंदाजा है, पर तुझे शायद मेरे साहस का तनिक भी अंदाजा नहीं है?” रोब से सोलर प्रोब ने अपनी मूछों पर ताव देते हुए कहा. ”एक बार मैं ठान लूं, तो फिर मुझे कौन रोक सकता है? मैं न सिर्फ़ तेरे पास आऊंगा, तेरे साथ सात फेरे भी लूंगा.”
”वो कैसे?” सूरज का तेज कुछ मंद पड़ा और आवाज भी.
”मुझे केप केनेवरल स्थित प्रक्षेपण स्थल से डेल्टा-4 रॉकेट के जरिए रवाना किया गया है. मैं आऊंगा, मगर धीरे-धीरे और संभल-संभलकर. पग-पग पर तेरी शक्ति का जायजा लूंगा और दुनिया को तेरी असलियत बताऊंगा.” सोलर प्रोब ने उसी लहजे में कहा.
”सात फेरे की बात तो छोड़ ही दे, पहले यह बता कि तू मेरे पास आ सकेगा?” आग उगलते हुए सूरज ने सवाल दागा.
”तुझे पता है मुझे बेहद शक्तिशाली हीट शील्ड से सुरक्षित किया गया है, ताकि मैं तेरे ताप को झेल सकूं और धरती की तुलना में 500 गुना ज्यादा रेडिएशन झेल सकूं. यह कार्बन शील्ड 11.43 सेंटी मीटर मोटी है.”
सोलर प्रोब बोला, ”फिर भी अगले 7 सालों में मैं तेरे साथ सात फेरे लूंगा.”
”तुम आ कहां से रहे हो?” सूरज ने कहा, ”यह भी बता दो, कि तुम्हारे आने का उद्देश्य क्या है? तो शायद मैं तुम्हारी सहायता कर सकूं.”
”मैं आपसे लगभग 9 करोड़ 30 लाख मील दूर धरती से आ रहा हूं सूरज दादा,” सोलर प्रोब ने रिश्ता जोड़ते हुए कहा, ”मेरा उद्देश्य आपके के वायुमंडल जिसे कोरोना कहते हैं, का विस्तृत अध्ययन करना है. आप मेरी मदद करेंगे न!”
”बिलकुल मदद करूंगा. मेरा तो काम ही मदद करना है. मैं धूप, गर्मी, ऊर्जा देकर 24 घंटे पृथ्वी की मदद ही तो कर रहा हूं. धरती के पानी का अवशोषण करके बादल बनाता हूं, फिर स्वच्छ करके पुनः धरती को सिंचित कर देता हूं. धरती की नमी को सुखाना, कीटाणुओं का नाश करना आदि मेरे ढेरों काम हैं. तुम अपने साथ किसी और को भी ला रहे हो?”
”नहीं दादा जी, अभी तो मैं अकेला ही चला आ रहा हूं, हां अपने साथ कुछ ला रहा हूं-
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया.
मैं अपने साथ एक मेमरी कार्ड के जरिए 11 लाख 37 हजार 202 लोगों के नाम भी ला रहा हूं, जो इसी साल मार्च में नासा ने अपने ऐतिहासिक मिशन का हिस्सा बनने के लिए लोगों से नाम मंगाए थे. एक बात और मैं आपके वायुमंडल कोरोना से 24 बार गुजरूंगा.” ‘पार्कर सोलर प्रोब” ने कहा.
”अच्छा भाई, तुम आओ तो सही, पर ये बताओ कि तुम बार-बार पार्कर का नाम क्यों ले रहे हो? पार्कर तो पेन का नाम है न!”
”हां दादा जी, पार्कर पेन का नाम है, पर मेरे इस मिशन का नाम अमेरिकी सौर खगोलशास्त्री यूजीन नेवमैन पार्कर के नाम पर रखा गया है. पार्कर ने ही 1958 में पहली बार अनुमान लगाया था कि सौर हवाएं होती हैं. मेरे साथ एक भारतीय मूल के अमेरिकी खगोलशास्त्री सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर का नाम भी जुड़ा हुआ है. 60 साल पहले उनके हस्तक्षेप की वजह से ही सौर हवाओं के अस्तित्व से जुड़ा शोध पत्र प्रकाशित हो सका था.” ”पार्कर सोलर प्रोब” ने कहा, ”बाकी बातें बाद में मिलने पर करेंगे, कहीं मैं मार्ग से ही न भटक जाऊं. ऐसा हुआ तो अनेक वैज्ञानिकों की अथक मेहनत और उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा और इस प्रॉजेक्ट पर नासा ने 103 अरब रुपये भी तो खर्च किए हैं. मैं अपने बारे में कुछ और बताता हूं- मैं एक अंतरक्षियान हूं, जो आपकी सतह के सबसे करीब 40 लाख मील की दूरी से गुजरूंगा, मैं 9 फीट 10 इंच लंबा हूं और मेरा वजन 612 किलोग्राम है. आप सह लेंगे न!”
”हां भाई हां. आओ फिर सात फेरे भी तो लोगे न! चले आओ.” सूरज ने कहा.
मानव इतिहास में पहली बार सूरज की सतह के करीब जा रहे नासा के सोलर पार्कर प्रोब की नींव के पीछे भारतीय का हाथ है। जी हां, यह कोई और नहीं बल्कि भारतीय मूल के अमेरिकी खगोलशास्त्री सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर थे। 60 साल पहले उनके हस्तक्षेप की वजह से ही सौर हवाओं के अस्तित्व से जुड़ा शोध पत्र प्रकाशित हो सका था। दरअसल, रविवार को नासा की तरफ से लॉन्च किया गया सोलर पार्कर प्रोब का नाम वैज्ञानिक यूजीन पार्कर के नाम पर रखा गया है। पार्कर ने ही 1958 में पहली बार यह अनुमान पेश किया था कि सौर हवाओं का अस्तित्व है। इस प्रस्ताविध शोधपत्र के आधार पर ही नासा ने अपना पार्कर प्रोब यान सूरज पर भेजा है।