नील गगन को छूने दो !
न मन में संकोच है, न भावों में आक्रोश है।
मन का पंछी न सुने ,दिल का क्या दोष है।
ख्वाहिशों को मचलने दो,नील गगन को छूने दो;
हर पल को जीने की चाह,धड़कन मदहोश है।
जाने कितनी बार सहा,डर डर कर मैं जीया;
समय फिसलता रेत सा,फिर क्यों न होश है।
चल पड़े जब ये कदम , पीछे न मुड़ेंगे अब;
जीवन मिलता न बार बार,जागा ऐसा जोश है।
बाधाएं न रोक सकेगीं,हमको न टोक सकेगीं;
उन राहों को छोड़ कर,आँखों में न रोष है।