ग़ज़ल
तत्पर तो जत्था , सैनिक का सारा है …..
जब भी दुश्मन ने हमको ललकारा है …..
रक्षक बन जाता है , सीमा पर सैनिक …..
वह ही तो सबकी , आँखों का तारा है …..
कितने ही संकट आएँ , इस धरती पर …..
देखा – भाला हर , संकट ही हारा है …..
कितनी मुश्किल होती है , सीमा पर तो …..
फिर भी सैनिक ने , दस – दस को मारा है …..
यादों में ही दिन , वीरों के कटते हैं…..
बरसे आँखों से तो , आँसू खारा है …..
कष्टों से जूझा करते हैं , पर्वत पर …..
गर्मी, सर्दी जब , चढ़ता पारा है …..
हर मजहब को साथ लिए , ये है चलती …..
‘रश्मि’ इस धरती को नमन हमारा है…..
–– रवि रश्मि ‘अनुभूति’