गीतिका/ग़ज़ल

“गज़ल”

काफ़िया- आ, स्वर, रदीफ़-, रह गया, वज्न- 212 212 212 212, फाइलुन, फाइलुन, फाइलुन, फाइलुन

आदमी भल फरज मापता रह गया

ले उधारी करज छाँकता रहा गया

खोद गड्ढा बनी भीत उसकी कभी

जिंदगी भर उसे पाटता रह गया।।

दूर होते गए आ सवालों में सभी

हल पजल कब हुई सोचतारह गया।।

उमर भर की जहमद मिली मुफ्त में

ढाँककर फल रखा बाँटता रह गया।।

हर शितम अपने माथे पे मढ़ता गया

थी न स्याही मगर पोछता रह गया।।

वो न कागज लिखा ले कलम हाथ में

जो वसीयत मिली बाँटता रह गया।।

आदमी सा दिखा शख्स गौतम खड़ा

नींद आई कहाँ जागता रह गया।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ