जैसेे भारत है उजडा….
आन मान मर्यादा का वो, काव्य यहां पर छोड़ गये
अबतक यहां जो अटल रहे, वो सबसे नाता तोड गये
आन मान मर्यादा का वो,…………………
ज्ञानवान उस धौर्यवान ने, इक फूल यहां पे खिला दिया
वो रचनाकार अब चला गया, सबको यहां रूला दिया
सर ऊंचा करके इस दुनियां में, सबसे मुंह वो मोड़ गये
आन मान मर्यादा का वो,…………………
वो कलमकार इक सच्चे थे, वो नाजिर सबसे अच्छे थे
वो संरक्षक थे सबके, हम सब उनके बच्चे थे
कमान सौंप की दुनियां को, वो लगाम यहीं पे छोंड गये
आन मान मर्यादा का वो,…………………
सबको राह दिखा करके, वादों पे अपने अटल रहे
काव्य जगत के सागर में, खिले वो कमल रहे
पंचतत्व से बना जो था, वो फानूस यहां पे तोड़ गये
आन मान मर्यादा का वो,…………………
जब डोरी टूट गई उनकी, तब सागर अश्कों का उमड़
इस पल ऐसा लगता है, जैसेे भारत है उजड़ा
मसि डालो काव्य नया रचो, वो कलम यहां पें छोंड गये
आन मान मर्यादा का वो,…………………
तूफानों से कस्ती लाई, अब तक उसको है खेई
नाखुदा वो सबसे अच्छे थे, अटल विहारी बाजपेई
इस संभालों जग वालों, (राज)पाट सब छोंड गये
आन मान मर्यादा का वो,……………..
अटल विहारी बाजपेयी जी को भावभीनी श्रृद्धांजलि
-राज कुमार तिवारी (राज )