“दोहा”
इंसानों के महल में, पलती ललक अनेक।
खिले जहाँ इंसानियत, उगता वहीँ विवेक।।
जैसी मन की भावना, वैसा उभरा चित्र।
सुंदर छाया दे गया, खिला साहसी मित्र।।
अटल दिखी इंसानियत, सुंदर मन व्यवहार।
जीत लिया कवि ने जगत, श्रद्धा सुमन अपार।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी