क्षणिका बरखा से गुजारिश नीरज सचान 20/08/201822/08/2018 अभी राह में हूँ । ऐ बरखा! जरा थम के बरस । या लगा लेने दे, दो घूंट “मैं” के ! फिर फिक्र क्या, तू जम के बरस !!