व्यंग्य – हिंसा अमर रहे!
मनुष्य हिंसक प्राणी है। हमारे मनीषी और महापुरुष न जाने कब से ज्ञान का कोलड्रिंक पिला-पिलाकर उसे ‘मानव’ बनाने के पीछे अमर हो गए। बुद्ध-महावीर-नानक-गाँधी और न जाने कौन-कौन? कितने आए और कितने चले उपदेश देकर! पर उसने अपनी टेक ना छोड़ी। उसका एक ही ध्येय वाक्य रहा-‘हिंसा परमो धर्म:।’ नाखून और दाँतों को शस्त्र के रूप में प्रयोग करता हुआ मनुष्य का हिंसा प्रेम आज परमाणु-बम तक पहुँच गया है। ‘पाषाण-युग से परमाणु-युग’ यह मानव के विकास की कहानी है। इसके स्मारक हैं-‘पत्थर, तीर-कमान, भाले, बरछी, तलवारें, तोप, बंदूक, बारूद और बम।’ हथियारों के ये बदलते स्वरूप मानव-सभ्यता का विकास है या दानव-सभ्यता ? शोध का विषय है। शांति के नाम पर कबूतर उड़ानेवाला आधुनिक मानव, आदिकाल से पक्षियों और प्राणियों को मारकर खा रहा है। अब तक इसकी क्षुधा मिटी ना तृष्णा। इससे अहिंसा की आस रखना ठीक वैसा ही है जैसे, बिच्छू से डंक न मारने की।
समय के साथ मानव ने सभ्यता के नये प्रतिमान गढ़े। खून पीते-पीते वह शराब पीने लगा। जानवरों को मारते-मारते वह इंसानों को मारने लगा। समझ जागी थी तो कपड़े पहनना शुरू किया था सभ्य होते ही कपड़े उतारने आरंभ कर दिए। ज्ञान की प्राप्ति ने स्वार्थ के नये आयाम स्थापित किए। घूसखोरी, घोटालों में परिवर्तित हो गई। हिंसा भी एकल नहीं रही। झगड़े, हत्या बने। हत्या, हड़ताल। हड़ताल, आंदोलन और फिर सामूहिक हिंसा। अहिंसा के पालन के लिए धर्मों का निर्माण हुआ। धर्म की रक्षा के लिए फिर मारकाट की गई। वास्तव में हिंसा करनेवाले सच्चे अर्थों में ‘मनुष्य-धर्म’ के प्रचारक हैं।हिंसा पर कितनी विपदाएँ आईं, साहब, पर इन्होंने अपना खून देकर उसे ज़िंदा रखा। इन पुरुषार्थियों घुटने नहीं टेके। उन्होंने पूरे मनोयोग से हिंसा-धर्म का पालन किया । इन्हीं की कुरबानियों का फल है कि आज सारे विश्व में हिंसा कीइ फुलवारी महक रही है।
हिंसा का इतिहास सालों नहीं, सदियों नहीं अपितु युगों पुराना है। हमारे पुराण और धार्मिक आख्यान इससे अटे पड़े हैं। हिरण्यकश्यपु, हिरण्याक्ष, रावण, कंस आदि वे महारथी हैं जिन्होंने हिंसा की जड़ को सींचा। कालांतर में संसार के बड़े-बड़े शासक और राजा इसे सहेजते रहे। आतंकवादी, नक्सलवादी और हमारे मोहल्ले का गुंडा ‘कल्लू’ तो हिंसा की लघूत्तम इकाई है। आधुनिक युग में आत्म-रक्षा के नाम पर राष्ट्रों के द्वारा अरबों का व्यय बजट के नाम पर किया जाता है। मानवता की रक्षा के लिए हथियारों और आयुधों की खरीदी पर करोड़ों के घोटाले किए जा रहे हैं। मूर्ख हैं आप जो शांति सम्मेलन का आयोजन कर और सफेद ध्वज फहराकर और कबूतर उड़ाकर हिंसा की हत्या करना चाहते हैं। जब तक सूरज-चाँद है, हिंसा को कोई खत्म नहीं कर सकता। वह राम-बुद्ध-गौतम-महावीर और नानक के देश में जीवित रहेगी- आरक्षण, बलात्कार, यौनाचार, अत्याचार और शोषण के रूप में। हिंसा अमर है। हिंसा अमर रहे!
— शरद सुनेरी