बेटियाँ
बेटियाँ
खो रही मधुरिम सरसती बोलियाँ |
अश्क आँखों में सिसकती बेटियाँ |
दर्द सहती उफ न करती ये सदा –
बेटियाँ हैं दो कुलों की संधियाँ |
वारती सर्वस्व अपना नेह वश –
जीत कर भी हारती हैं बाजियाँ |
भाई बेटों को ना शूल एक –
ये मिटा देती हैं अपनी हस्तियॉं |
ख्वाब बेटों के लिये है अनगिनत-
बेटियों पर है गिराते बिजलियाँ |
कोख में ही खत्म करते भ्रूण को
बच गयीं तो डालते हैं बेड़ियाँ |
जश्न आजादी मनाते हर बरस-
रूढ़िवादी आजभी बैसाखियाँ |
गर न सोंचागे विचारोगे अभी –
वक्त ना लेगा नकभी अंगड़ाइयाँ |
बेटियाँ होंगी नहीं संसार मे –
क्या बजेंगी फिर यहाँ शहनाइयाँ |
रूह तक अब दर्द से आबाद है –
अब तो तन्हा हो गयीं तन्हाईयाँ |
©®मंजूषा श्रीवास्तव
लखनऊ (यू.पी)