गीतिका/ग़ज़ल

बेटियाँ

बेटियाँ

खो रही मधुरिम सरसती बोलियाँ |
अश्क आँखों में सिसकती बेटियाँ |

दर्द सहती उफ न करती ये सदा –
बेटियाँ हैं दो कुलों की संधियाँ |

वारती सर्वस्व अपना नेह वश –
जीत कर भी हारती हैं बाजियाँ |

भाई बेटों को ना शूल एक –
ये मिटा देती हैं अपनी हस्तियॉं |

ख्वाब बेटों के लिये है अनगिनत-
बेटियों पर है गिराते बिजलियाँ |

कोख में ही खत्म करते भ्रूण को
बच गयीं तो डालते हैं बेड़ियाँ |

जश्न आजादी मनाते हर बरस-
रूढ़िवादी आजभी बैसाखियाँ |

गर न सोंचागे विचारोगे अभी –
वक्त ना लेगा नकभी अंगड़ाइयाँ |

बेटियाँ होंगी नहीं संसार मे –
क्या बजेंगी फिर यहाँ शहनाइयाँ |

रूह तक अब दर्द से आबाद है –
अब तो तन्हा हो गयीं तन्हाईयाँ |
©®मंजूषा श्रीवास्तव
लखनऊ (यू.पी)

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016