गज़ल – रज़ा
मौसमें गुल की है रज़ा तुम आओ तो सही।
दिल जलाने लगी फजा तुम आओ तो सही
दिल के ऐवान में सजी है अंजुमन देखो
छाए अशआर का मज़ा तुम आओ तो सही
फ़िराक के अश्को से लबरेज़ हैं आंखे
दिल को मंजूर हर सज़ा तुम आओ तो सही
अब तो दीदार हो ,फ़कत न हो पर्दादारी
रुह का वस्ल हो वज़ा तुम आओ तो सही
जल रहै हैं चराग़ तेरा इंतज़ार लिये
रौशनी की न हो कज़ा तुम आओ तो सही
— पुष्पा “स्वाती”