कविता

कविता

रोज़ की तरह आज सुबह भी
ले आया हूँ एक खूबसूरत आज
मजबूरियों के कत्लखाने में
कि उतारकर खाल इसकी
बोटी-बोटी कर
बेच दूँगा शाम तलक
ताकि भर सके
मेरी और मेरे परिवार की
ज़रूरतों का पेट

ये दिन………
जिसे कुदरत ने पैदा होते ही
सौंपा था मेरे हाथ में
ख्वाहिशों की चादर में लपेट कर
लेकिन मैंने कर दिया कत्ल इसका
एक बे‍हतर कल की आस में

कंस ने तो सिर्फ
आठ नवजात मारे थे
अमर होने की चाह में
लेकिन मैंने तो मार डाले हज़ारों आज
सिर्फ एक बे‍हतर कल की आस में

जालिम बादशाहों की सूची में
होना चाहिए मेरा नाम शीर्ष पर
क्योंकि मैं तो रोज़ कत्ल करता आया हूँ
और रोज़ करता ही रहूँगा
जब तक कोई आज कृष्ण बनकर
मुझे मुक्त न कर दे
एक बे‍हतर कल की अभिलाषा से..!

आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]