कविता हो तुम श्रंगार की…….
ग़ज़लों सी आँखें, गीतां से गाल।
छन्दों सी सूरत, दोहे से बाल।।
दिल ये करे गुनगुनाता रहूँ
कविता हो तुम श्रंगार की………2
चौपाइयों सी तेरी शान है
मुक्तक के जैसी पहचान है
छड़िकाओं सी हैं लटें जुल्फ की
सोरठे के जैसी मुस्कान है।
मात्राओं सा है बदन क्या कहूँ
दिल ये कहे तुमको गाता रहूँ
कविता हो तुम श्रंगार की………2
सपनों की दुनियां से लाया गया।
वेदो में तुमको ही गाया गया।
ऋषियों की वाणी में तूही मिले।
हर व्याकरण से सजाया गया
हे सुन्दरी मैं तुम्हें क्या कहूँ
दिल ये कहे तुमको गाता रहूँ
कविता हो तुम श्रंगार की………2