ये पावन उत्सव नेह का, रक्षापर्व आया है।
रेशम की डोर से लिपटा , रक्षापर्व आया है।
सावन की पुरवाई में डोले है मन बावरा,
सखियों संग, हम झूले झूला, रक्षापर्व आया है।
बिटिया है पराई , देहरी पे बैठी है उदास,
कब मिले भैय्या का संदेशा, रक्षापर्व आया है।
कैसे रुठूँगी भैय्या से, कैसे मनायेगा भैय्या,
उमडा ज्वार भावना का, रक्षापर्व आया है।
सीमा पे है डटे भाई, देश की रक्षा की खातिर,
विजयी हो घर लौटे भैय्या, रक्षापर्व आया है।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”