गीतिका
जब से मिली है लड़कियों को आज़ादी,
खुद लड़कियाँ चुन रही हैं राह ए बर्बादी।
ना जाने क्या सोचकर चुप हैं माता पिता,
जानते हैं क्या गुल खिला रही बिना शादी।
गुलछर्रे खूब उड़ाती हैं बनाकर बॉयफ्रेंड,
होटलों में रंगरलियां मनाती हैं शहजादी।
कामवासना में हो अंधी भूली अपनी मर्यादा,
और आई पिल खाने की हो गयी हैं आदी।
दुष्प्रभाव आई पिल के शादी बाद नजर आते,
बांझपन के डर से याद आ जाती नानी दादी।
माता पिता हुए लापरवाह पवित्रता बचे कैसे,
लड़कियों के संग माता पिता भी हैं अपराधी।
आगे आकर अब लड़कियों को समझाना होगा,
समाजहित के लिए “सुलक्षणा” बनी फरियादी।
— डॉ सुलक्षणा