सामाजिक

बलात्कारेण

तकरीबन 18-19 साल पहले की एक धुंधली याद आज मन मे फिर ताजा हो गयी ।
संस्कृत विषय के एक अध्याय की किसी पंक्ति में “बलात्कारेण” शब्द आता था । मेरे गुरु जी आदरणीय शास्त्री जी बढ़े ही रोचक ढंग से अर्थ सहित उस काव्यांश का व्याख्यान कर रहे थे, उन्होंने ब्लात्कारेण शब्द का उच्चारण किया ही था कि मानो हम सब को ठहाके लगाने की अनुज्ञप्ति सी मिल गयी हो । कक्षा के कोने-कोने से हम जैसे शरारती तत्व ब्लात्कारेण – ब्लात्कारेण कह कर चिल्लाने लगे । गुरु जी बहुत ही सहज स्वभाव के थे, पहले तो शांत हो जाओ, चुप हो जाओ कहते रहे किन्तु हम सब “बौरे गांव में ऊँट” की भांति चिल्लाते रहे ।
परिस्थितियों को बिगड़ता देख गुरु जी क्रोधित हो उठे और देखते ही देखते पूरी कक्षा को मार मार कर मखोल करने की सारी खुमारी उतार दी । कक्षा में अब इतना सन्नाटा पसर गया था कि मानो सांस लेने की आवाज भी सुनी जा सकती थी ।
दिल के भोले और आदतों से सौम्य शास्त्री जी का विशाल ह्रदय भी था वो मुस्कुरा कर बोले बच्चो “बलात्कारेण” का अर्थ वो नही है जो आप लोग समझ रहे हो ।
“बलात्कारेण” का अर्थ है वह कार्य जो बल पूर्वक किया गया हो। तब से एक बात समझ आ चुकी थी कि बलात्कार वो नही है जो हम समझते थे ।

आज शाम सात बजे इलाइट चौराहे से निकलते वक्त मैने देखा कि चौराहे से आवागमन बन्द किया हुआ है। करीब बीस मिनट इंतजार के बाद मुझसे रहा नही गया कि आखिर हुआ क्या है, किनारा पकड़ते हुए आगे बढ़ने की नाकाम कोशिश कर ही रहा था कि मुझे बस पर चढ़े हुए कुछ महानुभाव दिखे जिनके हाथ मे स्लोगन शीट थी, जिसमे सिर्फ “फांसी” शब्द ही मुझे ठीक से नजर आ रहा था ।
ये समझते हुए पल भर भी नही लगा कि ये लोग मध्यप्रदेश में हुए बलात्कार के विरोध में प्रदर्शन कर रहे है ।
यहाँ तक तो ठीक था किंतु जब लोगों को इंतजार करते हुए तकरीबन चालीस मिनट तक हो गए तो कुछ राहगीरों ने चौराहा पार करने की कोशिश की ही थी कि सारे प्रदर्शनकारी भड़क गए और कार एवं दूसरी गाड़ियों पर डंडे बरसाने शुरू कर दिए ,लोगों का कॉलर पकड़ कर समझाइश देने लगे ,हालांकि पुलिश का भी अच्छा खाशा संख्या बल मौजूद थ किन्तु सब तमाशबीन बने किसी बूत की तरह खड़े हुए थे , एक दो पुलिश वालों ने रोकने का प्रयास जरूर किया किन्तु जय श्री राम के नारों के शोर में उनकी आवाज दबती गयी और वो पीछे हटते गए।
बहुत देर इंतजार के बाद आखिर प्रदर्शन खत्म हुआ और लोगो को आगे बढ़ने की अनुमति मिली ।
पूरे रास्ते भर मैं सोचता रहा कि मध्यप्रदेश में जो हुआ वो बहुत ही दुःखद है और अपराधी को फांसी की सजा भी मिले तो कम है , किन्तु आज जिसकी गाड़ियाँ तोड़ी गयी, जिन्हें पीटा गया, एक घंटे तक पांच हजार लोगो को जबरदस्ती रोका गया क्या वो बलात्कार नही था ???

— नीरज सचान

नीरज सचान

Asstt Engineer BHEL Jhansi. Mo.: 9200012777 email [email protected]