बातें दादी-नानी की
अक्सर हम जब दादी-नानी की बातें करते हैं, तो हमें दादी-नानी के नुस्खे ही याद आते हैं. दादी-नानी के खजाने में और भी बहुत कुछ है. आइए करते हैं कुछ बातें दादी-नानी की.
हमने आपको सिडनी में रहने वाली भारतीय मूल की महिला कैलाश भटनागर से मिलवाया था. ”एक सक्षम हस्ताक्षर, कैलाश भटनागर” ब्लॉग की 94 साल की नायिका कैलाश भटनागर को मैंने बहुत बारीक-बारीक डॉट्स वाली खूबसूरत पेंटिंग करते देखा. यह खुद में एक विचित्र अनुभव था. इस उम्र में भी बिना चश्मे के इतने बारीक डॉट्स वाली खूबसूरत पेंटिंग करने वाली उस सफल दादी-नानी के मजबूत खूबसूरत दांतों को देखो, तो देखते ही रह जाओ. इस पर वे कहती हैं- ”मेरे दांत देखकर अक्सर लोग कहते हैं, कि मेरे दांत नकली हैं, पर मैं अभी भी आराम से बिना तकलीफ के गाजर चबा सकती हूं.” ये दादी-नानी अभी भी महीने में 4 कविताएं लिखती और कवि सम्मेलनों में सुनाती हैं. हर कविता एक-से-बढ़कर एक होती हैं.
चलिए अब एक और दादी की बात करते हैं. अपनी ये दादी एशियन गेम्स में भारत की तरफ 570 खिलाड़ियों के बड़े जत्थे का हिस्सा हैं. इनका नाम है रीता चोकसी, जो 79 साल की उम्र में अपना दांव आजमाएंगी. रीता चोकसी इंडोनेशिया में ताश के पत्तों के खेल ‘ब्रिज’ में भारत की तरफ से मेडल की दावेदारी पेश करने गई हुई हैं. रीता का लक्ष्य देश को गोल्ड मेडल दिलाना है. इस बार जकार्ता एशियाड में सेरेब्रल गेम्स (मानसिक खेल) की भी एंट्री हो रही है और उन्हीं में से ब्रिज एक है. कार्ड प्लेयर्स की 24 सदस्यीय टीम की औसत उम्र 60 साल है जिसमें चार प्लेसर्स की उम्र 70 साल से ज्यादा है. बचपन से ही रीता को पत्ते फेंटने का शौक था, फिर वह उनका पैशन बन गया.
रीता साल 1970 से ही इस खेल में हिस्सा ले रही हैं और उन्होंने कई इंटरनैशनल टूर्नमेंटों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है. वह चीन, पाकिस्तान और अमेरिका में भी इस खेल में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं. उन्होंने एशियन गेम्स के लिए टिकट गोवा में एक टूर्नमेंट में शानदार प्रदर्शन करने के बाद पक्का किया था. उन्होंने कहा कि एशियन गेम्स में चीन और इंडोनेशिया से कड़ी चुनौती मिलेगी.
अब एक नानी की बात कर लेते हैं. इसे आप नैनो की नानी भी कह सकते हैं. यह है Microlino: अंडे जैसी दिखने वाली ‘बबल कार’, जो जरा सी जगह में फिट हो जाएगी. अंडे जैसे आकार वाली ‘बबल कार’ यूरोप में 1950 और 1960 के दशकों में सस्ती और आसान मोबिलिटी के तौर पर पहचान रखती थी. स्विट्जरलैंड के दो भाई मिलकर इसका नया टू सीटर वर्जन तैयार कर रहे हैं. यह कार बीएमडब्ल्यू की Isetta का मॉडर्न अवतार है जिसका प्रॉडक्शन कंपनी ने 56 साल पहले बंद कर दिया था. Isetta की कुल 1,60,000 से भी ज्यादा यूनिट्स बिकी थीं. लुकवाइज यह नैनो से भी छोटी है, ऐसे में इसे नैनो की नानी भी कह सकते हैं.
अब बातें दादी-नानी की होंगी, तो नुस्खे तो होंगे-ही-होंगे. पीछे की पॉकिट में रखा पर्स टेढ़ी कर सकता है रीढ़ की हड्डी. जी हां, रीढ़ की हड्डी सीधी रखनी हो तो पीछे की पॉकिट में पर्स मत रखिए. दादी-नानी के अलावा यह जानकारी डॉ. राममनोहर लोहिया संस्थान के न्यूरो सर्जरी विभाग के डॉ. फरहान ने भी दी है. वे इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में न्यूरो ट्रॉमा पर आयोजित कार्यशाला में शिरकत कर रहे थे. तीन दिवसीय इस आयोजन में देश-विदेश से लगभग 360 न्यूरो विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया.
दादी-नानी की ऐसी बातें आप भी कामेंट्स में हमें बता सकते हैं.
दादी-नानी की बातें हमें बचपन से ही बहुत कुछ सिखाती आ रही हैं. हम दादी-नानी की बातें सुन-सुनकर ही बहुत-सा ज्ञान प्राप्त करते हैं. इसका कारण सम्भवतः यह भी है, कि उस समय मां घर-परिवार के कामों में ही बहुत व्यस्त रहती है, जब कि दादी-नानी के पास समय और अनुभव होता है. आजकल तो सब डिजिटल हो गए हैं, बच्चे भी और उनके अभिभावक भी. आजकल तो गूगल ही सब कुछ बता देता है, फिर भी दादी-नानी की बातों का जवाब नहीं. आपका क्या विचार है?