लघुकथा – अंतर्ध्वनि
“वकील साब पैसा भले ही,कितना भी खर्च क्यों न हो जाए, पर मेरे बेटे का बाल भी बांका नहीं होना चाहिए.” पूरे क्षेत्र में अति प्रतिष्ठित व्यापारी व विधान परिषद सदस्य जालान साब ने कहा.
” अरे माननीय,आपके बेटे को कुछ नहीं होगा,आप निश्चिन्त रहें.” वकील मल्होत्रा ने उन्हें आश्वासन दिया.
” दरअसल,जवानी के जोश में मेरा बेटा मिंकू,नौकरानी की दस साल की बेटी निम्मो के साथ रेप कर बैठा,पर मल्होत्रा जी ये कौन बड़ी बात हो गई ? ” जालान साब ने अपने दिल की बात कही.
” जी महोदय,आपका कहना सौ फीसदी सही है,मैं पूरी तरह से सहमत हूं. वैसे भी तो मिंकू बाबा थोड़े से रोमांटिक किस्म के हैं. हा–हा—हा—हा—-.” विधि विशेषज्ञ व वकील मल्होत्रा ने हंसते हुए कहा,जिसे सुनकर जालान साब भी उसका साथ दिए बिना न रह सके.
पूरे इलाके में अपनी दमदार पैरवी के लिए जाने जाने वाले वकील मल्होत्रा साब की एक से बढ़कर एक सॉलिड दलीलों ने सारे साक्ष्यों को धराशायी करके रख दिया. तय था कि मिंकू बच जाएगा. अगली तिथि पर जज महोदय को अपना फैसला सुनाना था. सब उस तिथि की बेकरारी से प्रतीक्षा कर रहे थे.
पर निर्धारित तिथि को मल्होत्रा साब ने उदास चेहरे और थके कदमों के साथ अदालत में प्रवेश किया और जज महोदय के सीट पर बैठते ही इज़ाज़त लेकर कहा – ” मी लॉर्ड,मैं आपसे विनती करता हूं कि मेरी सारी दलीलों को निरस्त करते हुए आप मिंकू मतलब सुमित जालान को रेप का दोषी मानें और उसे कड़ी से कड़ी सज़ा दें. ऐसा इसलिए, क्योंकि वह रेप का गुनहगार है, गुनहगार है, गुनहगार है.” यह कहकर वे फूट- फूटकर रोने लगे. यह देखकर सभी हक्का- बक्का थे.
कुछ देर बाद अपने को संभालकर मल्होत्रा साब धीरे से बोले कि, मैं इधर रेप के एक गुनहगार को बचा रहा था, और उधर कल दिल्ली में इंजीनियरिंग पढ़ रही मेरी बेटी ही रेप का शिकार हो गई है. इससे मेरी आंखें खुल गई हैं. फिर थोड़ा ठहरकर वे ऊपर की ओर देखकर भरे गले से बोले कि– ” हे भगवान, मुझे माफ करना.”
— प्रो.शरद नारायण खरे