गीतिका/ग़ज़ल

प्यार में वो अश्क दामन भर गये

31/8/18
प्यार में वो अश्क दामन भर गये |
हाय यों लगता निकल गौहर गये |

बेसबब भटका किये हम दर ब दर-
बन्द पलकें ख्वाब सारे मर गये |

लफ्ज़ सारे हो गये खामोश अब –
अश्क आँखों से भी सारे झर गये |

मेरा कुछ बाकी नही मुझमें रहा –
वो गये क्या संग मेरे तेवर गये |

तोड़ कर मेरा भरोसा हर भरम –
इस तरह तन्हा जहाँ में कर गये |

जिस चमन से ताजगी पाया किये –
उस चमन के फूल सारे हर गये |

वक्त लम्हा ज़िन्दगी की दौड़ में –
कितने काँटे पाँव के अंदर गये |

धूम मस्ती के झरोखे सज उठे –
जब कभी हम दोस्तों के घर गये |

कुछ “मृदुल”यादें सुहाने रंग कुछ –
देह में फिर प्राण नूतन भर गये |
मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल “

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016