कर्मठ
जो काम से डरकर कभी,
चुपचाप रह जाते नहीं,
जो भाग्य के आश्रित नहीं,
कर्मठ हैं कहलाते वही.
चाहे कोई भी बाधा हो,
जब नर का पक्का इरादा हो,
पर्वत भी धूल बन जाते हैं,
कांटे भी फूल बन जाते हैं.
कल का क्या भरोसा करना है,
कल को कहो किसने देखा है?
निज काम स्वयं ही करने से,
बन जाती भाग्य की रेखा है.
जो मान देता समय को,
पाता समय से मान है,
जो जी चुराता काम से,
खाता उसे ही काम है.
जो अग्नि से, तूफानों से,
निज राह से हटते नहीं,
नाकाम वे होते नहीं,
वे ही हिला सकते मही.
नहीं धूप जिसको जला सके,
नहीं शेर जिसको डरा सके,
नहीं काम जिसको थका सके,
वह नर महान है, हे सखे.
जो काम से डरते नहीं धूप,
जिन में रुचि हो लगन हो,
वे बात बड़ी करते नहीं,
हैं काम करते मगन हो.
पर्वत हो जाते धूल सम,
नदियां खेती सरसाती हैं,
जंगल में मंगल हो जाता,
जब बुद्धि तेज दिखाती है.
जो उलझनों को धकेलते,
जो अड़चनों से खेलते,
जो काम करके ही टले,
वे जगत में फूले-फले.
पर्वत न जिसको डिगा सके,
सागर नहीं जिसको हिला सके,
वन-व्योम में जो डटा रहे,
वह जन ही कर्मठ कहा सके.
कर्मठ व्यक्ति की पहचान है वह व्यक्ति, जो डरे-थके-घबराए नहीं, किसी काम या बाधा से घबराए नहीं. ऐसा व्यक्ति सभी बाधाओं को पार कर सकता है. अभी हाल ही में 18वें एशियाई खेलों में हमने देखा कि अनेक आर्थिक रूप से कमजोर व साधनहीन खिलाड़ी देश के लिए सोना-चांदी जीतकर देश का गौरव बन गए.