मेरे संघर्ष की दास्तां
”बड़े शौक से सुन रहा था जमाना,
तुम ही सो गए दास्तां कहते-कहते.”
यह शेर किसी और के लिए भले ही सटीक व सार्थक हो, पर मेघना साहू के लिए नहीं. मेघना साहू यानी देश की पहली ट्रांसजेंडर कैब चालक, जो पूरी तरह सजग होकर ओला कैब चालन करती है. मेघना साहू के कैब चालक बनने की दास्तां खासे संघर्ष से पूर्ण है. इस संघर्ष को वे अब भी भुला नहीं पाती हैं.
”मैंने, मार्केटिंग और ह्यूमन रीसोर्सेज में एमबीए किया. यह वह योग्यता है, जिसके बलबूते पर किसी को भी अच्छी-खासी नौकरी मिल सकती है. मेरे साथ ऐसा नहीं हो सका. मैं उम्मीद में नौकरियां बदलती रहीं कि दूसरे लोगों की तरह उनसे भी समान व्यवहार किया जाएगा. पर उन्हें कई बार रिजेक्शन झेलना पड़ा. मुझे दूसरों के बराबर मौके हासिल करने के लिए भी मशक्कत करनी पड़ी. यहां तक कि ड्राइविंग लाइसेंस और ट्रेनिंग के साथ ही नौकरी हासिल करने में भी मुश्किलें सामने आती रहीं. सुप्रीम कोर्ट ने जब ट्रांसजेंडर्स को तीसरे जेंडर के रूप में मान्यता दे दी तब उनके लिए चीजें कुछ आसान होने लगीं.” मेघना के मन से दर्द छलकना स्वाभाविक है.
”जेंडर की वजह से कई बार मुझे पक्षपात का सामना करना पड़ा, पर मैंने कभी हार नहीं मानी. मैं अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ती गईं और आज मेरे कैब चालक बनने से न सिर्फ मेरे साथ सफर करनेवाली महिलाएं सुरक्षित महसूस करती है, बल्कि पुरुषों को भी कोई दिक्कत नहीं होती.” संघर्ष को नियति मानने वाली मेघना का कहना है.
”ट्रांसजेंडर समुदाय के दूसरे लोगों से भी मेरी अपील है, कि ड्राइविंग को करियर बनाने और इसके सहारे अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश करें.” मेघना पूरे समुदाय को अपने साथ ले चलने की चाहत लिए हुए कहती हैं.
मेघना साहू के संघर्ष की दास्तां सचमुच बहुत ही संघर्षमय होते हुए भी देश की मुख्यधारा में जुड़ने के साहसमय प्रयास की प्रेरक दास्तां है. आशा है उनकी अपील पर ट्रांसजेंडर समुदाय के दूसरे लोग भे इस या किसी अन्य व्यवसाय से जुड़कर देश की मुख्यधारा में सम्मिलित होने का साहसिक प्रयास करेंगे.