व्यंग्य- वर्तमान में कृष्ण
हर साल हमारे देश में करोड़ों कृष्ण पैदा लेते रहे हैं। कोई नई बात नहीं है। शास्त्रीय गणना के अनुसार, कंस कारागार में जन्मे द्वापर के कृष्ण से ही गणना करें, तो लगभग साढ़े पाँच हजार साल पूर्व से मानें और कृष्ण में आस्था रखनेवाले देशी-विदेशियों की संख्या से गुणित करें तो कृष्ण की संख्या कई करोड़ हो जाती है। इसे अगर जीवित की संख्या को आधार बनाना चाहें तो हर भारतीय की औसत आयु साठ वर्ष ही मानें तो साठ करोड़ तो माने ही जा सकते हैं। उसमें भी युवा वर्ग की मानी गई आयु बीस से पचास वर्ष भी मानें तो तीस करोड़ कृष्ण तो भारत भूमि पर होने ही चाहिए, जो हैं।
बेशक, इनमें लाखों गाय-भैस भी चराते, कोई पकौड़े बेचते, मिल जाएंगे। वो भी मिलेंगे जो सरेआम रासलीला रचाने में विश्वास रखते ही नहीं, रचाते भी है। जहाँ तक माखन चोरी की बात है तो आधुनिक कृष्ण सार्वजनिक स्थानों से चप्पल-जूते चुराने से अभ्यास शुरू करते हुए, देश की सत्ता पर बैठकर देश चुराने तक में महारत हासिल ही नहीं कर लेते बल्कि आंखों के आगे आंकड़ों की सफाई पेश करके जताते भी हैं।
और जहाँ तक नेतृत्व का प्रश्न है वहाँ भी नेतृत्व इन कलियुगी कृष्णों का ही है। नेतृत्व चाहे गाँव-गली, शहर-कस्बे से लेकर राष्ट्रीय सत्ता तक की ही क्यों न हो। कितने तो नेतृत्व क्षमता के आधार पर गाय-भैस चराते-चराते मंत्री, मुख्य-मंत्री पद को सुशोभित करते हुए आम-आदमी से लेकर बड़े-बड़े डिग्रीधारियों को भी चराने में सिद्धहस्त साबित हुए हैं। बेशक, वे जेल में न जन्मे हों, जेल से बाहर ही जन्मे हों पर स्वयं को कॄष्ण सिद्ध करने के लिए जेल यात्रा जरूर करते हैं।
शायद, इसलिए भी जेल को वर्तमान राजनीति में सम्मानकनक तीर्थ स्थल मानकर यात्राएँ की जाती रही है। जो सत्ता प्राप्ति में सहायक भी सिद्ध हुए हैं। इस तरह लोग ग्वाल-बाल के रूप में साक्षात कृष्ण को देख ही नहीं सकते बल्कि उनकी आराधना में विरिदावली गाते हुए माखन चखने का मौका भी प्राप्त करते रहे हैं। यूँ तो रासलीला में प्रवेश वर्जित है फिर भी देवों के देव महादेव शिवजी जैसे गोपीरूप धारण कर रासलीला के आनन्द भी उठा ही सकते हैं।
द्वापर के कृष्ण कन्हैया बाँसुरी बजाते थे और आज के कृष्ण कन्हैया बीन बजाते हैं। औऱ बीन के धुन पर ही प्रतिपक्षी विषबोलों को नाच नचाते हैं। जरूरत पड़ी तो नाग नथैया भी कहलाते हैं।
कौन कहता है कि अब भारत भूमि पर कृष्ण जन्म नही लेते ? इस प्रकार कहा जा सकता है कि- निश्चित रूप से जन्म लेते ही नहीं, बल्कि दिखते भी हैं।
बेशक, युग परिवर्तन के अनुरूप गीता में उद्घोषित प्रतिज्ञा में परिवर्तन कुछ ऐसा करना पड़े तो करना चाहिए।
“यदा-यदाहि अधर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
अधर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे।”
इसलिए, प्रेम से बोलिये कृष्ण कन्हैया लाल की जय।
— स्नेही “श्याम”