कविता

मौन स्वीकृति

भरी सभा में जब द्रौपदी का
हुआ  था  चीर- हरण
बिलखती द्रौपदी को, दिया न
किसी ने न्याय  की  शरण  ।
अंधे राजा की सभा  में
छाया था सम्पूर्ण अंधकार
साहस नहीं था किसी में
कर सके अन्याय का प्रतिकार ।
केवल  बोले  विदुर  जी
महाराज त्यागिए पुत्र को आज
होगी बड़ी  कृपा सब पर
रखिये भरत वंश की लाज ।
शूर  वीरों की सभा में, एक
नारी पर हो इतना अत्याचार
ऐसे वीरों को क्या  कहें
प्रश्न उठता है मन में बार-बार ।
गांधारी की ममता विवश थी
रानी होकर भी कर्तव्य न निभाया
त्याग न सकीं पुत्र को, अपितु
श्राप से अपने वंश को बचाया ।
बिलखती द्रौपदी से कहा कृष्ण ने
सम्पूर्ण नारी जाति का हुआ अपमान
मिलेगा सबको दंड अवश्य
चूर चूर होगा दुर्योधन का अभिमान ।
घायल शेरनी बन दहाड़ी द्रौपदी
धिक्कार है अर्जुन के गांडीव पर
अपमानित होता देख पत्नी को
दुष्टों पर कर न सका प्रहार  ।
गदाधर भीम की तो  कोई
सानी नहीं  है  जग  में
पता नहीं कौन सा कांटा
चुभा था उनके पग  में  ।
महाराज युधिष्ठिर तो माने जाते
युग के  धर्म  अवतार
फिर कैसे सहा धर्मराज ने
अधर्म का यह व्यभिचार  ।
कुरुक्षेत्र का युद्ध छिड़ा
हुआ दुष्ट कौरवों का  नाश
कांप गई थी मानवता तब
देख वह भयावह  विनाश  ।
पर क्या पांचाली के घाव को
मिल सका था शांति का प्रलेप
क्या वह विनाश मिटा सका था
उसके मन का वह  आक्षेप  ?
किसी के रक्त से धुल नहीं सकता
ह्रदय में लगे अपमान का घाव
मृत्यु पर्यन्त मिल नहीं सकती
उसके मन को शांति की छाँव ।
एक प्रश्न चिन्ह बनकर आज भी
घटना, मानस पटल पर है अंकित
कब तक दुराचारियों के हाथों
मानवता होती रहेगी लज्जित ?
पूर्णतः मौलिक- ज्योत्स्ना पाॅल

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]