उतर आया था गोद में मेरी आकाश से चंद्रमा जब पहली बार, असीम आनंद की अनुभूति हुई थी नारी से एक संपूर्ण नारी बनकर। समा गया था संपूर्ण व्यक्तित्व में मेरे चांद की शीतल रोशनी। उस दूधिया रोशनी में स्पष्ट झलक उठा था मेरे हृदय में उठता भावनाओं का ज्वार और.. एक निशब्द ध्वनि गुंजित […]
Author: *ज्योत्स्ना पाॅल
सपनों का बीज
बोया था मैंने एक बीज अपने आंगन के कोने में, लगे कई वर्ष अंकुरित होकर उसे बड़ा होने में। धीरे धीरे फैले पत्ते और फैली शाखाएं, लिया एक बड़ा पेड़ का आकार देने लगी शीतल हवाएं। उसके घनी छांव तले बैठकर सुस्ताने लगे पथिक, मिटाकर अपने शरीर की थकान आनंदित होते बहुत अधिक। कहा एक […]
तलाश
अमेरिका की एक अच्छी यूनिवर्सिटी से एम एस की डिग्री लेकर कृतिका ने वहीं पर दो साल किसी कंपनी में नौकरी की। पर न जाने क्यों उसका दिल नहीं लगा। उसे वहां पर एक खालीपन, एक सूनापन सदैव सताता रहा। जब भी अपनी माटी की याद आती तो उसे लगता कि नौकरी छोड़कर वह चली […]
स्त्री श्रमिक
“स्त्री श्रमिक” तपती हूं मैं भी भरी दुपहरी में बहाती हूं स्वेद तन से, भीगती हूं बारिश में मैं भी उठाती हूं सिर पर बोझ, फिर भी मुझे क्यों कमतर आंका जाता है मानव तेरी स्वार्थी दुनिया में। क्या मेरे शरीर का रक्त का रंग लाल नहीं या फिर स्वेद का रंग कुछ और है। […]
परख
सुबह सुबह उज्जवल घर पहुंचा तो मां सुहासिनी के चेहरे पर अपने नाम के अनुरूप हंसी की उजली किरण बिखरी हुई थी, परंतु.. उज्जवल के चेहरे पर अपने नाम के विपरीत बिल्कुल अंधेरा। मां को समझ में नहीं आ रहा था कि घर आने की खुशी में बेटे को खुश होना चाहिए। इतना दुखी क्यों […]
हिंद का गांव
शरीर बसा दूर देश में किंतु मन में बसा हिंद के गांव है, जहां की बोली में सरलता और जीवन में सहजता का भाव है। माटी की पगडंडी पर जब बारिश की पहली बूंदें गिरती है सोंधी सोंधी महक उसकी तन- मन को पागल कर जाती है। मन आंगन में स्नेह की धूप तन को […]
मर्दानगी
“हेलो.. अनीता.. जब से तुम मायके गई हो तब से मैं यहां परेशान हूं। तुम तो वहां सब के संग बहुत खुश हो न? तुम्हें क्या फर्क पड़ता है मैं परेशान हूं कि नहीं।” चिढ़ते हुए अंशुमान ने अपनी पत्नी से कहा। “आप ही तो कह रहे थे.. रोज-रोज का चिक चिक आपको अच्छा नहीं […]
पहली गलती
” मेम साहब.. हम पर झूठा इल्जाम मत लगाओ। आप की कान की बाली खो गई है तो मैं इसमें क्या करूं? मुझे क्यों चोर ठहरा रही हो? मैं आपके यहां चोरी करने नहीं आती, काम करने आती हूं पेट के खातिर। कितने सालों से आपके घर काम करती हूं मैं। कभी कोई चीज में […]
राधा मैं हारी
सुन लो पुकार मेरी, कहती है राधा बेचारी। अब न बनूंगी मैं राधा, बनके राधा मैं हारी।। सुनो हे गिरधारी मुरली मनोहर अगले जन्म तुम्हें है राधा बनना, बनूंगी मैं कृष्ण कन्हैया तुम्हारा सही जो पीर मैंने तुम्हें है सहना। विरह वेदना में जली, बनके संगिनी तुम्हारी। अब न बनूंगी मैं राधा, बनके राधा मैं […]
कद्रदान
तीन बहनों में मंझली नवीना का नैन नक्श अति साधारण है परंतु गुणों का भंडार। पढ़ने में सबसे होशियार। सभी कामों में निपुण, चाहे घर में खाना बनाना हो या बाजार से जाकर राशन पानी, सब्जियां लानी हो। कोई भाई ना होने के कारण बाहर के सारे कार्य की जिम्मेदारी उसने अपने ऊपर ले रखी […]