कहानी

तलाश

अमेरिका की एक अच्छी यूनिवर्सिटी से एम एस की डिग्री लेकर कृतिका ने वहीं पर दो साल किसी कंपनी में नौकरी की। पर न जाने क्यों उसका दिल नहीं लगा। उसे वहां पर एक खालीपन, एक सूनापन सदैव सताता रहा। जब भी अपनी माटी की याद आती तो उसे लगता कि नौकरी छोड़कर वह चली जाएं अपने देश, अपने लोगों के बीच में और तलाश करूँ एक ऐसी जमीन की.. जहां पर पैर रखते ही एक सुकून सा महसूस हो, दिल को चैन पड़े।

इतने सालों में कृतिका की आंखें एक जीवन साथी की भी तलाश करती रहीं परंतु मनचाहा कोई मिला ही नहीं। कोई ऐसा मिला ही नहीं जिससे मन के तार जुड़ जाए और कोई सुरीली झंकार निकल पड़े। वह अब 32 साल की हो चुकी है परंतु दिल का कोना अभी भी खाली पड़ा है। कभी कोई मिला भी तो विचार नहीं मिल पाए और बात बीच राह पर ही खत्म हो गई।

आखिर वह दिन आ ही गया जिस दिन का कृतिका इंतजार कर रही थी। उसने अमेरिका की नौकरी छोड़ कर भारत में एक मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी ज्वाइन कर ली। कंपनी के मैनेजर अरविंद सुब्रमण्यम ने स्वयं ही अप्रोच किया था कृतिका को। उसने मन ही मन सोचा मैनेजर है तो अधेड़ उम्र का ही होगा, जैसा अमूमन होता है। परंतु जिस दिन उसने नौकरी ज्वाइन की, मैनेजर को देखते ही हक्का-बक्का रह गई। 35 से 40 के बीच में उम्र होगी मैनेजर की। देखने में सुदर्शन और काफी नॉलेजेबल।

पहले दिन ही अरविंद सुब्रमण्यम ने पूछ लिया “आप अमेरिका में इतनी अच्छी नौकरी छोड़कर इंडिया क्यों चली आई?”
“दरअसल स्टूडेंट लाइफ में तो कुछ समझ में नहीं आया परंतु नौकरी करते ही मुझे वहां काफी सूनापन महसूस होने लगा था। अपने घर से दूर रहकर कब तक कोई इंसान अकेला रह सकता है। घर की याद बहुत सता रही थी, तो चली आई।”
“लोग तो अमेरिका जाने के लिए पागल होते हैं और आप वापस चली आई।”
“सबके अपने अपने विचार है, अपनी अपनी इच्छा है। मुझे अपने परिवार के साथ रहना ज्यादा अच्छा लग रहा है और सच कहूं तो अपने देश में एक अपनापन सा महसूस होता है। ऐसा विदेश में महसूस नहीं होता। ये मेरे विचार है, बाकी लोगों का मुझे पता नहीं।”
“गुड.. वेरी गुड.. आपके विचार जानकर मुझे बहुत ही अच्छा लगा। आपका स्वागत है मेरी कंपनी में।” बोल कर हंस पड़ा अरविंद।
“थैंक यू वेरी मच सर!” कृतिका भी हंस पड़ी।
“आप मुझे सर न कहकर अरविंद कह सकती हैं!”
“इंडिया का कल्चर तो सर कहने का है इसलिए मैंने सर कहा। अमेरिका में तो नाम ही लिया जाता है। आई एग्री.. जैसी आपकी इच्छा।” कृतिका पुनः मुस्कुरा पड़ी।
इस तरह पहले ही दिन से मैनेजर अरविंद के साथ कृतिका का एक दोस्ताना तालुकात बन गया। अब कृतिका को भी अपनी कंपनी में काम करना बेहद सुखद और आसान लगने लगा क्योंकि वातावरण हल्का-फुल्का हो गया था। उसके मन में तो यह डर बैठा था पता नहीं इंडिया में जाकर ऑफिस का माहौल कैसा होगा, तालमेल बैठा पाएंगे कि नहीं। परंतु मन से सारा डर खत्म हो गया। एक सुखद वातावरण में उसका मन लग गया।

एक दिन कृतिका अपने डेस्क पर अपना कार्य करने में मगन थी। सामने मैनेजर को देखकर उठ कर खड़ी हो गई। ” ओहह…हाय अरविंद! क्या बात है? आप मुझे मेल कर देते तो मैं आपके केबिन में आ जाती!”
कृतिका की व्यवहार कुशलता और भोलापन देख कर अरविंद को बहुत अच्छा लगा। उसने मुस्कुराते हुए कहा “नहीं.. मैं ऑफिस के काम से नहीं आया। आज मेरा व्यक्तिगत काम है। आप से एक रिक्वेस्ट करने आया हूं आपके पास समय हो तो थोड़ी देर के लिए हम कॉफी हाउस चल सकते हैं न?”

अचानक कॉफी हाउस की बात सुनकर कृतिका असमंजस में पड़ गई। क्या जवाब दे उसे कुछ सूझ नहीं रहा था। उसे खामोश देखकर अरविंद ने पुनः सवाल किया “मेरी बातों का आपने जवाब नहीं दिया?”
“समय.. हां समय तो है.. काम है पर मैं कर लूंगी। कब जाना है बताइए?”
“अभी 5:00 बज रहे हैं। 5:00 बजे का समय कॉफी का ही होता है न? क्यों सही है न?” मुस्कुरा पड़ा अरविंद।
“हां बिल्कुल सही है.. चलिए, कौन सी कॉफी हाउस जाना है?” कृतिका ने पूछा।
“यही पास में। बेंगलुरु में कॉफी हाउस की कमी है क्या? पास में ही सीसीडी है वहीं चलते हैं। वहीं चलकर कॉफी पीते हैं और बातें करते हैं। काम तो चलता रहता है। कभी कभी माइंड को भी रिलैक्स करना चाहिए।” मुस्कुराकर अरविंद ने कहा।
“बिल्कुल सही.. मैं तो इस मामले में सबसे आगे। काम तो जीवन भर करना है पर अपने माइंड को भी कभी कभी बूस्ट अप करने की जरूरत पड़ती है। ताकि आगे का कार्य अच्छे से हो।” मुस्कुराकर कहा कृतिका ने।

कॉफी की चुस्की लेते हुए अरविंद ने पहला सवाल दाग दिया “आपने अभी तक लाइफ पार्टनर नहीं चुना? या कोई पसंद है जिस से शादी करने वाली हैं?”
अचानक शादी की बात और लाइफ पार्टनर की बात सुनकर कृतिका सकपका गई। क्या जवाब दे कुछ समझ में नहीं आया तो उसने भी तुरंत सवाल पर सवाल कर दिया “आपने शादी की कि नहीं की?”
“की थी, पर.. अब फिर से बैचलर हो गया हूं।”
“मतलब.. मतलब समझ में नहीं आया!”
“शादी के पश्चात केवल दो महीने हम साथ में रहे, उसके बाद सदा के लिए अलग हो गए।”
“कारण?”
“वैचारिक तालमेल न होना अमूमन जो होता है!”
“शादी.. अरेंज थी या लव मैरिज?”
“अरेंज मैरिज.. मम्मी, पापा की पसंद से शादी की थी!”
” ओह! दैट्स सैड..एम सॉरी! अरेंज मैरिज होने के बाद भी नहीं निभ पाई? लोग तो कहते हैं अरेंज मैरिज सक्सेस रहती है। कितनी उम्र हो गई आपकी?”
“39..”
“दोबारा नहीं सोचा कभी?”
“कोई मिली ही नहीं अभी तक.. या कह लीजिए समय ही नहीं मिला। पर आप ने शादी क्यों नहीं की अभी तक? आपकी उम्र कितनी होगी?”
“लड़कियां कभी अपनी उम्र नहीं बताती! मैंने भी शादी इसलिए नहीं की कोई मनपसंद मिला ही नहीं। यह कह लीजिए ऐसी कोई जमीन मिली ही नहीं जिस पर कदम रख कर सुकून महसूस कर सकूं, भरोसा कर सकूं! रहा सवाल उम्र का तो मैं बता ही देती हूं मैं 32 साल की हूँ।”

दोनों को एक दूसरे के बारे में जानना और एक दूसरे से बातें करना बहुत अच्छा लग रहा है परंतु समय है कि भागे जा रहा है।

अपनी घड़ी की ओर देखकर अरविंद ने कहा “ओह! काफी समय हो गया, अब चलें.. जो काम बचा है उसे निपटाया जाय। और घर भी तो जाना है। फिर कभी आएंगे सुकून से बैठकर कॉफी पिएंगे और बातें करेंगे।”

अरविंद और कृतिका का संबंध एक दोस्त के दायरे को तोड़कर बाहर निकल चुका है। अब दोनों अक्सर कभी कॉफी हाउस में तो कभी रेस्टोरेंट में तो कभी मॉल घूमने निकल जाया करते हैं। दोनों को एक दूसरे का साथ भाने लगा है। अरविंद के विचार तथा टैलेंट से कृतिका काफी प्रभावित है। उधर अरविंद को भी कृतिका की मन की सुंदरता और भोलापन भा गया।

एक दिन कॉफी हाउस में दोनों ही खामोश बैठे हुए कॉफी पीए जा रहे थे। अरविंद को भी समझ में नहीं आ रहा था कि मन की बात किस तरह से कहा जाए। कृतिका भी अपनी दुनिया में खोई हुई सोच रही थी “इस रिश्ते का क्या अंत होगा? क्या इस रिश्ते को कोई नाम मिलेगा या यूं ही एक दिन दम तोड़ देगा?”
निशब्दता को तोड़ते हुए अचानक अरविंद कृतिका का हाथ पकड़ते हुए बोल पड़ा “कृतिका.. विल यू मैरी मी?” वह एकटक कृतिका के चेहरे को देखे जा रहा था और इंतजार कर रहा था जवाब का।
अचानक यह बात सुनकर कृतिका निशब्द हो गई और अरविंद के चेहरे को देखे जा रही थी। ऐसी बात की उसने जरा भी उम्मीद नहीं की थी। हालांकि उसके मन में इस बात को सुनने की बेचैनी तो थी परंतु उसने सोचा न था कि बात इतनी आगे निकल जाएगी।
“कृतिका वेयर आर यू? मैंने कुछ पूछा है।”
कृतिका जैसे सपनों की दुनिया से जाग उठी। अरविंद की ओर देखकर वह शरमा गई और अपनी नजरें नीची करके कहा “हां मुझे आपकी बात मंजूर है।”

कृतिका से इतनी बातें सुनते ही अरविंद कि जैसे बांछें खिल गई। अपनी खुशी जाहिर करते हुए उसने कहा “शादी से पहले हमें एक ऐसे घर की तलाश है जहां पर मोहब्बत भरे दो दिल को सुकून मिल सके। एक ऐसी जमीन की तलाश है जहां हम अपनी सपनों की दुनिया बसा सके। जिसकी नींव इतनी मजबूत हो कि दुनिया के झंझावातों का कोई असर न हो। कोई तोड़ न सके हमारे सपनों के जहां को।”

अरविंद की बातें सुनकर कृतिका ने एक मुस्कान बिखेर दी जो मन की गहराइयों से उतर कर संपूर्ण चेहरे को शोभायमान कर रही थी। कृतिका मन ही मन सोचने लगी “मुझे जिस जमीन की तलाश थी आखिर वह जमीन मिल गई और अपनी जन्मभूमि पर आकर ही मिली। सच.. जन्मभूमि से बढ़कर कोई भूमि नहीं होती जिस पर इंसान चैन की सांस ले सकें, जिसकी विश्वास की नींव बहुत मजबूत हो और इमारत सुदृढ़।”

आज दोनों हाथों में हाथ डाले.. चेहरे पर एक मधुर मुस्कान लिए.. दुनिया से बेखबर कॉफी हाउस से निकल पड़े..!!

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।श

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com