लघुकथा

कद्रदान

तीन बहनों में मंझली नवीना का नैन नक्श अति साधारण है परंतु गुणों का भंडार। पढ़ने में सबसे होशियार। सभी कामों में निपुण, चाहे घर में खाना बनाना हो या बाजार से जाकर राशन पानी, सब्जियां लानी हो। कोई भाई ना होने के कारण बाहर के सारे कार्य की जिम्मेदारी उसने अपने ऊपर ले रखी है। उसके गुणों का बखान तो आसपास के लोग भी करते हैं परंतु जब शादी की बात आई तो लड़के वाले शक्ल सूरत को देखकर वापस चले जाते हैं। इस बात से नवीना के पिता अजीत कुमार बहुत दुखी है।

बड़ी बेटी मीरा की शादी एक अच्छे घर में हो गई है। लड़का किसी सरकारी कंपनी में इंजीनियर है। नवीना एम.बी.ए.. करने के पश्चात एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करती है। जॉब के साथ साथ उसने पूरे घर की जिम्मेदारी भी अपने ऊपर ले रखी है। ऑफिस में भी उसके कार्य करने की क्षमता और व्यवहार से सब खुश हैं।

अजीत कुमार की सबसे छोटी बेटी निभा तीनों बहनों में सबसे खूबसूरत है पर पढ़ने में सबसे कमजोर। उसने इसी साल बी..ए. फाइनल एग्जाम दिया है, इसी बीच एक डॉक्टर का रिश्ता आया है। लड़की को देखने डॉक्टर मनोज और उसके माता-पिता आए हैं। कोई मेहमान आ जाए तो तरह-तरह के व्यंजन बनाने में नवीना को बहुत मजा आता है। इसलिए वह सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेती है। अपनी मां को ज्यादा परेशान होने नहीं देती है। मेहमानों की आवभगत करना एवं उनसे किस तरह से बातें की जाए इस बात में भी वह बिल्कुल निपुण है।

निभा को देखने एवं खाना खाने के पश्चात जब सब लोग बैठे हुए थे तभी लड़के के पिता ने अजीत कुमार से पूछा “आज खाना बड़ा स्वादिष्ट बना था, खासकर मटर पनीर की सब्जी और तड़के वाली दाल! अंत में जो केसर वाली खीर खाई है, वाह! भाई, मजा आ गया, लाजवाब। पर एक बात जानने की मेरी बड़ी इच्छा है, आप बुरा ना माने तो मैं पूछ सकता हूं?”
अजीत कुमार ने हाथ जोड़ते हुए कहा “हां.. हां.. क्यों नहीं.. आप जो भी पूछना चाहते हैं पूछिए।”
“यह बताइए आज खाना किसने बनाया है?”
“मेरी मंझली बेटी नवीना। ये आपके सामने ही बैठी है, घर में जब भी कोई मेहमान आते हैं तो खाना बनाने की सारी जिम्मेदारी स्वयं पर ले लेती है। अपने मां को कुछ करने ही नहीं देती। बाजार से सब्जी लाना, खाना बनाना, सारा कार्य स्वयं करती है। कहती है मैं अपने पसंद की सब्जियां लाऊंगी और अपने पसंद के हिसाब से बनाऊंगी। मुझे भी बाजार जाने नहीं देती है, कहती है..” आप घर में आराम करिए मैं सब संभाल लूंगी।”
“आप क्या करती हैं बेटा?” लड़के के पिता ने पूछा नवीना से पूछा।
“जी.. एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करती हूं।”
“कहां तक पढ़ाई की है?”
“जी.. मैंने इंजीनियरिंग करने के बाद एम.बी.ए. किया है।”
“पढ़ाई के बाद जॉब, फिर इतना सब काम कब सीखा आपने? और कैसे कर लेती हो?” लड़के के पिता ने आश्चर्य होते हुए पूछा।
“जी धीरे धीरे मम्मी से सब कुछ सीखा है और मुझे यह सब कार्य करने में बहुत मजा आता है।” नवीना ने शर्माते हुए कहा।

लड़के के पिता ने फिर अजीत कुमार की ओर मुखातिब होकर पूछा “आपकी बड़ी बेटी के रहते, छोटी बेटी की शादी करना चाहते हैं क्यों?”
अचानक ही यह बात सुनकर अजीत कुमार थोड़ा सा असमंजस की स्थिति में आ गया। थोड़ी देर रुक कर उसने धीरे धीरे कहा “दरअसल.. कई लड़के आए नवीना को देखने के लिए परंतु लड़के वालों को हमारी नवीना पसंद नहीं आई। नवीना ने ही कहा “पापा मेरी शादी की चिंता मत करिए। मैं तो नौकरी कर रही हूं। आप निभा के लिए सोचिए।”

थोड़ी देर कुछ सोचने के पश्चात लड़के के पिता ने अपने बेटे से तथा अपनी पत्नी से कुछ बात की, फिर कहा “हमें आपकी मझली लड़की नवीना पसंद है। और मेरे बेटे को भी पसंद है, आप शादी की तैयारी करिए। हमें दहेज में कुछ भी नहीं चाहिए, बस आप लड़की दे दीजिए।”

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com