कविता

रैन बसेरा

दुनिया है एक रैन बसेरा
कौन यहाँ हमेशा ठहरा
रात मुसाफिर विदा लेगा सवेरा
हो जायेगा फिर भूला बिसरा
दुनिया है एक रैन बसेरा   ।
पंच तत्वों से बना जो तन
उसमें बसता एक सुंदर मन
मन-घट भर लो प्रेम रतन धन
सबसे अनमोल जो जग में ठहरा
दुनिया है एक रैन बसेरा  ।
द्वेष,क्लेश में न गंवा एक पल
समय फिर तुझसे करेगा छल
बह जायेगा जैसे नदी का जल
लौटेगा न पल ये  दोबारा
दुनिया है एक रैन बसेरा  ।
कर्म बिन जीवन मृत्यु सम
पूरे करले हिस्से के कर्म
कर्म ही जीवन का बड़ा धर्म
हर पल पर है ईश का पहरा
दुनिया है एक रैन बसेरा   ।
काम ऐसा कुछ कर जा आज
जग तुझ पर करेगा नाज़
बंधेगा तेरे सर पे   ताज़
रचेगा इतिहास नया सुनहरा
दुनिया है एक रैन बसेरा  ।
टूटे जो स्वप्न वीणा के तार
नये स्वप्नों को दे आकार
छेड़ेगी वीणा सुरीली झंकार
आनन्दित होगा मन-गलियारा
दुनिया है एक रैन बसेरा  ।
पूर्णतः मौलिक- ज्योत्स्ना पाॅल

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]