लाईन भी वहीं से, जहाँ वे खड़े हो जाएं
“भाई क्या तुम्हें मालूम है कि नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इण्डिया को सख्त संदेश मिल चुका है कि वह अपने सभी टोल प्लाजा पर वीआईपी और मौजूदा जजों के लिए पृथक से एक्सक्लुसिव लेन रखें ताकि उन्हें अनावश्यक इंतजार और शर्मिंदगी का सामना न करना पड़े।देखो कितने दुर्भाग्य की बात है कि ऐसे महत्वपूर्ण लोगों को ये लोग कैसे लाईन में लगवाते हैं,” दद्दाजी ने सुबह का अखबार पढ़ते हुए फरमाया।
“हाँ दद्दाजी ,बिल्कुल सही आर्डर दिया है।वह तो अच्छा है कि उन्होंने अपने लिए अलग से सड़क,रेल मार्ग या आकाश मार्ग की बात नहीं की।नहींं तो वे जो चाहें, कर सकते हैं।आखिरकार लोकतंत्र के रखवाले जो ठहरे,” मैंने उनकी बात का समर्थन करते हुए कहा।
“हाँ भाई,वे आम लोग तो हैं नहीं कि सभी के आगे पीछे चलकर अपना टाईम वेस्ट करें।आखिर उनका अपना भी तो स्टेटस है और फिर उनका समय भी कितना कीमती है।वे आम जन तो हैं नहींं कि घण्टों जाम में फँसे रहे,क्यू में लगे रहें।खास लोगों की खास बात होती है!आप लोकतंत्र के नाम पर उनको टरका नहींं सकते और न ही उनकी फाईलें इधर उधर सरकाई जा सकती है। उसके लिए तो आम आदमी है उसकी फाईल का जितना निरीक्षण-परीक्षण, जाँच-वाँच,अवलोकन-ववलोकन और लौटा-फेरी करना हो कर सकते हैं क्योंकि आम आदमी के पास टाईम ही टाईम है।वैसे भी वह बहुत फुर्सती भी है।जहाँ भी यात्रा-वात्रा हो,मोर्चा-वोर्चा हो, भीड़ जुटाना हो,वह सदैव तत्पर रहता है।लेकिन वीआईपी तो वीआईपी हैं।उनको कैसे फुर्सती समझने की गलती कर सकते हैं,”दद्दाजी ने जोर देकर कहा।
“किन्तु दद्दाजी,कहते हैं कि लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है।लोकतंत्र तो जनता का,जनता के लिए और जनता द्वारा की जाने वाली शासन व्यवस्था है।फिर जनता के साथ भेदभाव कैसा!ये जो वीआईपी बने बैठे हैं,ये भी तो जनता के सेवक हैं,जनता के प्रतिनिधि हैं तब इनके लिए विशेष सुविधा कैसी!” मैंने अपनी जिज्ञासा प्रकट की।
“ तुम्हारा कहना सही है लेकिन वे भी तो जनता की सेवा के लिए दिन रात लगे रहते हैं।तुम्हारी तरह यदि वे भी लाईन में लगने लग गये तो हो गई सेवा।और फिर उनका मान भी क्या रह जाएगा।हर कोई उन्हें भी तुम्हारी तरह टटपुँजिया समझने लगेगा।इसलिए जरूरी है कि उन्हें मान दिया जाए ।आप उनकी अवमानना नहीं कर सकते।यदि टोल पर अलग लेन नहींं रख सकते तो फिर उनके लिए रास्ते ही अलग से आरक्षित कर देना चाहिए।और फिर टोल प्लाजा ही क्या,उन्हें तो हर जगह सबसे आगे और सबसे ऊपर रखा जाना चाहिए,”दद्दाजी ने उनका पक्ष रखा।
“लेकिन दद्दाजी यदि ऐसा हमने किया तब राजतंत्र और ऐसे लोकतंत्र में अन्तर ही क्या रह जाएगा।पहले भी बादशाह सलामत या शहर कोतवाल की सवारी निकलती थी तो आमजन को आजू-बाजू होना पड़ता था और सलामी देना होती थी सो अलग।क्या ये वीआईपी आज के नये बादशाह-सामन्त नहीं बन गए हैं,”मैंने विरोध जताया।
“तुम लोगों की धारणा ही गलत है।तुम्हारी बात और तर्कों से जलन भाव की बू आ रही है।वे जो भी कर रहे हैं जनता के लिए ही कर रहे हैं।इसके ऐवज में यदि वे जरा सी सुविधा की मांग करते हैं या चाहते हैं तो क्या बुरा करते हैं,”दद्दाजी ने गुस्सा होते हुए कहा।
मैं समझ गया कि मेरे तर्क कुतर्क ही होंगे और दद्दाजी उन्हें किसी भी हालत में मानने को तैयार न होंगे।अतःअब और कोई तर्क प्रस्तुत करने के स्थान पर मैंने हथियार फैंकने की मुद्रा में कहा-“तब ठीक है दद्दाजी, उनके लिए तो फिर फरमान जारी कर दिया जाना चाहिए कि वे जहाँ भी खड़े हो जाएं,लाईन वहीं से शुरू हो।लेन का झगड़ा ही खतम हो जाएगा। हाँ,इस बात पर भी विचार किया जा सकता है कि आम जनता की लेन ही मिटा दी जाए और नेताओं, नौकरशाहों, पहलवानों और दमदारों की अलग-अलग लेन कायम कर दी जाए,वैसे कलमकार भी कुछ कम नहीं हैं।क्या कहते हैं दद्दाजी!”