प्रेम गीत (लावणी छन्द)
प्रेम पुष्प जब खिला हृदय में
उपजे मधुर भाव मन में
मन मयूर जब लगा झूमने ,
लहरें उठती तब तन में। ।
बगिया की कलियाँ मुस्काई
गंध समाई अंगों में
भावों की अवली में खोयी ,
रँगी पिया के रंगों में ।
बैठ नीम की डाल तले. मैं ,
सपने बोऊँ अँखियन में।।
मन मयूर जब लगा झूमने ,
लहरें उठती तब तन में। ।
हुई बावरी सुध-बुध भूली,
पथ घर का भी भूल गयी ।
दोष किसे दें चंचल नैना ,
लोक-लाज निर्मूल भयी ।
अब तो प्रिय के स्वर ही निशि-दिन ,
लहराते हैं यौवन में ।।
मन मयूर जब लगा झूमने ,
लहरें उठती तब तन में। ।
व्यर्थ सजन पर जान लुटाई
श्वासो में क्या रोग बसा?
प्रीतम तुम पर मन को हारी
कैसा मोहक फंद कसा?
सब अधिकार तुम्हारा जाना ,
भर तुमको लूं चितवन में।
मन मयूर जब लगा झूमने ,
लहरें उठती तब तन में। ।
तोडूं सब प्रतिबंध रीत के ,
बहूँ धार ले सरिता की ।
प्रेम पिरोऊँ प्रेम-सूत्र में ,
माला गूँथूँ कविता की।
तुम्हे बाँधकर नयन-डोर से ,
डोलूँ मन के मधुबन में ।
मन मयूर जब लगा झूमने ,
लहरें उठती तब तन में। ।
— रीना गोयल