भाजपा की पिछड़ों को रिझाने की रणनीति क्या सफल हो पायेगी ?
आगामी लोकसभा चुनावों व विधानसभा चुनावों में अब भाजपा की बेहद कड़ी अग्निपरीक्षा होने जा रही है। यही कारण है कि अब भाजपा ने अपना पूरा ध्यान अतिपिछड़ों व पिछड़ों को साधने में लगा दिया है तथा उनके हितों को ध्यान में रखते हुए केंद्र व राज्य सरकारों तथा संगठन स्तर पर लगातार बढ़े व ऐतिहासिक फैसले लिये जा रहे हैं तथा जिन पर विवाद भी हो रहे हैं। केंद्र सरकार ने पहले दलित सांसदो के बढ़ते दबाव के कारण एससी-एसटी कानून पारित करवाया, ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जे का बिल पारित करवाने के साथ ही अब केंद्र सरकार ने 2021 की जनगणना में अन्य पिछडा वर्ग ओबीसी की अलग से जनगणना करायी जायेगी। आजादी के बाद यह पहला अवसर है जब जनगणना में ओबीसी के आंकड़ें अलग से जुटाये जायेंगे। अभी तक सिर्फ अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के आंकडे ही एकत्र किये जाते हैं।
मोदी सरकार का यह फैसला 2019 के आम चुनाव के पहले पिछड़ा वर्ग को लुभाने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी के आंकड़े जारी करने की मांग लम्बे समय से पिछड़े वर्ग के नेताओं की ओर से की जा रही थी। नेताओं का तर्क रहा है कि पिछड़े वर्ग को उनकी संख्या के अनुपात में आरक्षण देना चाहिये ओर इसके लिए पिछड़ों की संख्या की गणना होनी चाहिये। मोदी सरकार ने जनसंख्या के आंकड़ों को पूरी तरह से जारी करने का समय भी कम करके तीन साल कर दिया है। पहले इसमं 8 साल लगते थे लेकिन अब इसके सही आंकड़े 2024 में सामने आ पायेंगे। भारत में जातिगत आधारित जनगणना 1931 में हुई थी। इस हिसाबे से यह गणना ऐतिहासिक होने जा रही है, जिसके कई परिणाम निकलकर सामने आयेंगे। यही कारण है कि बीजेपी अब इन सभी फैसलों के आधार पर अतिपिछड़ों व पिछड़ों को रिझाने के लिए बहुत सारे कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है।
अभी 15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के मानसून सत्र को ऐतिहासिक करार देते हुए इसे सामाजिक न्याय के लिए मील का पत्थर बताया था। भारतीय जनता पार्टी ने इन कामों को जनता के बीच ले जाने के लिए कई आयोजन तय किये थे, जिसमें स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पिछड़ों व गरीबों का सबसे बड़ा मसीहा मनाने की तैयारी थी। लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी के देहावसान के कारण भजपा के सारे कार्यक्रम रद्द कर दिये गये थे, जो अब फिर से चालू किया जा रहे हैं।
जातिगत राजनीति सबसे अधिक उत्तर प्रदेश सहित उत्तर भारत के कई राज्यों में होती रही है। अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के 67 सांसद इस समय बीजेपी के पास है। उत्तर प्रदेश में इसी वर्ग ने बीजेपी की नैया 2014 से 2017 तक पार लगा दी थी। लेकिन सरकार बने काफी समय बीत चुका है तथा समाज के सभी वर्ग के लोगों को बीजेपी से काफी उममीदे हैं।
यही कारण है कि अब बीजेपी ने उत्तर प्रदेश के मतदाता को लुभाने के लिए भाजपा ने पिछड़े वर्ग, अतिपिछड़े व छोटे छोटे समूहो में बटीं विभिन्न जातियों के समूहों के सम्मेलन बुलाने शुरू कर दिये हैं तथा इन वर्गों को आकर्षित करने तथा अपने पाले में बनाये रखने के लिए कई प्रकार की घोषणायें ंभी कर ही हैं। इन जातियों को अपने पाले में करने की जिम्मेदारी उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को दी गयी है जबकि कई सम्मेलनों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी शामिल हुये हैं। मिशन 20189 को सफल बनाने के लिए विधायकों को हर ग्राम पंचायत में 50 नये सदस्य बनाने की जिम्मेदारी दी गयी है। यह भी तय किया गया है कि दस पिछड़े और एससी/एसटी के नये सदस्य अनिवार्य रूप से बनाये जायें। उत्तर प्रदेश के पिछड़ा वर्ग सम्मेलनों में कहा जा रहा है कि 2019 में नरेंद्र मोदी की दूसरी पारी पिछड़े वर्ग की हिस्सेदारी। साथ ही हर सम्मेलन में लगभग इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि कांग्रेस व सपा, बसपा जैसे जातिवादी और अवसरवादी दलों ने अपनी -अपनी सत्ता के दौरान पिछड़े वर्ग की अनदेखी की। लेकिन केंद्र की सत्ता में आते ही पीएम नरेंद्र मोदी ने गरीबों, पिछड़ों के कल्याण के लिए न सिर्फ कई योजनाएं लागू की अपितु अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलाकर पिछड़े वर्ग के लोगों के उत्थान का मार्ग प्रशस्त किया है। इन सम्मेलनों में हिंदुत्व का तड़का भी लगाया जा रहा है। पाल- बघेल सम्मेलन में बताया गया कि यह समाज राजमाता अहिल्याबाई होल्कर का वंशज है। जिन्होंने पूरे भारत वर्ष में 12,774 मंदिरों का निर्माण करवाया था। इसी प्रकार साहू-राठौर समाज का सम्मेलन आयोजित हो चुका है। विश्वकर्मा समाज का सम्मेलन भी हो चुका है।
भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा की ओर से अर्कवंशी, खड़कवंशी और खंगार जाति का सम्मेलन भी हो चुका है। लोकसभा चुनावों के मददेनजर पिछड़ीे और अतिपिछड़ी जातियों को बीजेपी के पक्ष में एकजुट करने के लिए पिछड़ा वर्ग मोर्चा लगातार सम्मेलन आयोजित कर रहा है। इन सम्मेलनों में पीएम मोदी के नेतृत्व में भाजपा को प्रचंड बहुमत प्रदान करने के लिए अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों को एकजुट होने का आहवान किया जा रहा है।
अभी लोध समाज को साधने के लिए भी सम्मेलन किया गया जिसको स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संबोधित किया। इस अवसर पर समाज कल्याण निगम के अध्यक्ष बी एल वर्मा ने कहा कि 95 फीसद लोध मतदाता बीजेपी को वोट करता है। वहीं पर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के पुत्र और एटा के सांसद राजवीर सिंह राजू ने कहा कि 98 फीसद लोध बीजेपी के साथ हैं। भाजपा नेतृत्व ने स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना अवंती बाई लोधी ओरपूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के सहारे इस समाज को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष ने कल्याण सिंह और अवंती बाई के नाम पर इस समाज का मान बढ़ाया। साथ ही एटा मेडिकल कालेज का नाम वीरांगना अवंतीबाई करने का ऐलान किया। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने इस अवसर पर लोध समाज को जनसंघ का पुराना सबसे मजबूत समर्थक बताया। जब कल्याण सिंह ने गांव, गली गलियारे का गीत दिया तो लोधी समाज ने ही सबसे अधिक भूमिका निभाई और बीजेपी पूर्ण बहुमत में सत्ता में आयी थी। उनका कहना है कि लोधी समाज चैबीसों घंटे बीजेपी का साथी रहा है। सम्मेलन को उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी संबोधित करते हुए कहा कि 2019 में मोदी जी के दोबार पीएम बनते ही देश से मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति का अंत हो जायेगा।प्रदेश भाजपा की ओर से इस प्रकार के सम्मेलनों का प्रतिदिन आयोजन किया जा रहा है। जिसके कारण सवर्णो के मन में शंका और संदेह के बादल खड़े हो गये हैं। आज सवर्ण समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग बीजेपी के खिलाफ खड़ा होता जा रहा है। बीजेपी की समाज के पिछडे वर्ग के लोगों व सपा-बसपा को तोड़ने के लिए बड़ी योजनायें बन रहीं हैं जो आगे चलकर सामने आयेंगी।
अभी तक राजनैतिक विश्लेषकों अनुमान था कि बीजेपी शहरी व सवर्ण वर्ग की पार्टी है लेकिन पीएम मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद अब वह समाज के अन्य वर्गो में अपना फैलाव कर रही है। वह शहरी पार्टी होने का ठप्पा छोड़ रही है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नाम पर पिछड़ों को एकजुट करने वाली भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को अप्रत्याशित सफलता मिली। केशव प्रसाद मौर्य के नेतृतव में बीजेपी को जबर्दस्त सफलता मिली। अब फिर से पिछड़ों को साधने के लिए भजपाने उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को जिम्मेदारी दी गयी है। अब तक प्रजापति, राजभर, सविता, सेन, नाइर्, अर्कवंशीय, विश्वकर्मा, पाल, बघेल, साहू, राठौर, लोधी, किसान, राजपूत और भुर्जी समाज का सम्मेलन हो चुका है। अभी कई जातियों के सम्मेल नहोन बाकी है। तथा आगे चलकर पिछड़े समाज की एक अतिविशाल रैली करने की तैयारी हो रही है। भाजपा की जातीय क्षत्रपों ंकी ताकत का लाभ लेने की योजना है।
अभी कमजोर वर्ग के लोगों को लुभाने के लिए उपमुख्यमंत्री केशव प्राद मौर्य ने सभी जातियों के महापुरूषों व नेताों के नाम पर सड़कों व पुलों का निर्माण करने का ऐलान किया है। आगामी 31 अक्टूबर को गुजरात में सरदार पटेल की विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा का उदघाटन पीएम मोदी के हाथों होने जा रहा है। उस दिन पटेल जयंती पर कई बड़ कार्यक्रमों का आरयोजन होने की तैयारी चल रही है। महाराष्ट्र में डा़ आबेंडकर की विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा बनने जा रही है। इस प्रकार इन वर्गो को साधने के लिए बीजेपी पूरी ताकत झोकने जा रही है। यही कारण है कि सवर्ण समाज में भय व शंका का वातावरण पैदा हो गया है। सवर्ण समाज की ओर से बुलाया गया भारत बंद काफी सफल रहा है। यदि बीजेपी ने अयोध्या में राम मंदिर को लेकर व सवर्ण समाज के लिए कुछ नहीं किया तो विरोधी दलो की ओर से बिछायी जा रही साजिशों के ताने बाने के कारण उसे नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। अतःसामाजिक समरसता को बऩाये रखने के लिए सवर्ण समाज की भावनाओं का ध्यान रखना ही होगा नही ंतो सबका साथ सबका विकास का ताना -बना ध्वस्त भी हो सकता है। उत्तर प्रदेश सहित उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों में सवर्ण समाज यदि नराज हुआ तो फिर अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोडत्री के लिए समस्या पैदा हो जायेगी। अतः बीजेपी नेतृत्व को इस विषय पर ध्यान देना चाहिये तथा नुकसान की भरपाई के लिए कड़े कदूम तत्काल उठाने चाहिये जिससे सवर्ण समाज चिंतामुक्त होकर देशहित में मतदान कर सके।
— मृत्युंजय दीक्षित