कविता

कलम एक जरिया

कलम तो एक जरिया है,
दिल के दर्द जताने का।
असल मे हर्फों में बयां हो जाये वो हम नही है।
जन्मो लगेंगे तुम्हे हमे समझने में।
बहुत आसानी से कह देते हैं लोग,
भूल जाओ पुरानी बातों को।
क्या रखा है बीती बातों में।
नही समझते कि वो हर लम्हा
हर पल कैसेे घुट घुट के जीया होगा।
सौ बार मरने से पहले मौत को

मैने महसूस किया होगा।
टूट के बिखरी थी कई बार जिंदगी मेरी।
कैसे टूटे दिल को फिर मैंने सीया होगा।
ना समझोगे तुम वो दर्द को,
जो महसूस किया था मैंने।
कितना रोया था ये दिल
जब पहला जख्म तुम ने दिया था।
अब तो आदत सी हो गयी है मुझे सहने की,
मोम की जो गुड़ियाँ कभी हुआ करती थी।
आज वो पत्थर की मूरत हो गयी हैं।
दोस्तों से दूर रह अपने जख्म को छुपाने लगी है।
देखो जो खुल के जीने की सीख देती थीं
कभी सब को।
आज कितना बनावटी सा जीने लगी है।
डरती है कि कहीं कोई गलती से भी

मेरे जज्बातों को ना पढ़ ले कही।
इसलिए थोड़ा बहुत रोमांटिक सा भी

दिखने का अभिनय बखूबी से कर लेती हूँ।
दोस्तो के बीच जम के हँस लेती हूँ।
कितना भी पूछे कोई,
बातो को बातो से बदल देती हूँ।
दर्द इस तरह अपने छुपा लेती हूँ।
कलम के सहारे कुछ राज

दिल के उकार लेती हूँ।
उभर आते हैं जब जज्बातों के

गुबार दिल से।
कुछ लिख के दर्द बाँट लिया करती हूँ।
एक नन्ही सी कलम हूँ, फिर भी
जिंदगी का बोझ उठा लिया करती हूँ।

संध्या चतुर्वेदी
मथुरा उप

संध्या चतुर्वेदी

काव्य संध्या मथुरा (उ.प्र.) ईमेल [email protected]