निर्भया
“निर्भया”
फिर आऊंगी बेटी बनकर
मां तेरे आंगन में
पूरे करना सपने वो सारे
अधूरे हैं जो तेरे मन में ।
तेरे घर की शोभा बनूंगी
फैलेगी रोशनी चारों ओर
नई सुबह होगी, हर सुबह
खुशी का होगा न कोई छोर ।
देकर प्यार की थपकी
बाहों के झूले में झुलाना
नींद न आए जब मुझे
लोरी गाकर सुलाना ।
उंगली पकड़ कर तेरी
चलूँगी जब पहला कदम
देख ये दृश्य मनभावन
मिलेगा तूझे आनंद असीम ।
धीरे-धीरे पढ़ाना मुझे
साहस के वो पाठ सारे
आन पड़े विपदा कभी तो
पीछे न हटूं डर के मारे ।
देख कर्म मेरे साहस भरे
नाम दे जग मेरा “निर्भया”
डर को जीत लूं मैं
सबला हूँ मैं, हूँ अभया ।
डटूं वहीं पर्वत बनकर
दहाड़ूं बनकर सिंहनी
साबित कर दूं जग को मैं
नारी हूँ मैं शक्ति रूपिणी ।
देख मुझे करे अनुसरण
विश्व की सम्पूर्ण नारी जाति
न फिर हो कोई “निर्भया कांड”
न दे कोई प्राणों की आहुति ।
झुकें न मानवता का शीष
बहाए न नैन अश्रुधार
नारी जाति सृष्टि की रचयिता
समझे जग इस बात का सार ।
ज्योत्स्ना के कलम से
मौलिक रचना
बहुत सुंदर रचना ज्योत्सना जी !
सहृदय आभार कांदु जी! आपके प्रोत्साहन के कारण ही ये संभव हो पाया है 🙏🙏🙏