कविता

निर्भया

“निर्भया”

फिर आऊंगी बेटी बनकर
मां तेरे आंगन में
पूरे करना सपने वो सारे
अधूरे हैं जो तेरे मन में ।

तेरे घर की शोभा बनूंगी
फैलेगी रोशनी चारों ओर
नई सुबह होगी, हर सुबह
खुशी का होगा न कोई छोर ।

देकर प्यार की थपकी
बाहों के झूले में झुलाना
नींद न आए जब मुझे
लोरी गाकर सुलाना ।

उंगली पकड़ कर तेरी
चलूँगी जब पहला कदम
देख ये दृश्य मनभावन
मिलेगा तूझे आनंद असीम ।

धीरे-धीरे पढ़ाना मुझे
साहस के वो पाठ सारे
आन पड़े विपदा कभी तो
पीछे न हटूं डर के मारे ।

देख कर्म मेरे साहस भरे
नाम दे जग मेरा “निर्भया”
डर को जीत लूं मैं
सबला हूँ मैं, हूँ अभया ।

डटूं वहीं पर्वत बनकर
दहाड़ूं बनकर सिंहनी
साबित कर दूं जग को मैं
नारी हूँ मैं शक्ति रूपिणी ।

देख मुझे करे अनुसरण
विश्व की सम्पूर्ण नारी जाति
न फिर हो कोई “निर्भया कांड”
न दे कोई प्राणों की आहुति ।

झुकें न मानवता का शीष
बहाए न नैन अश्रुधार
नारी जाति सृष्टि की रचयिता
समझे जग इस बात का सार ।

ज्योत्स्ना के कलम से

मौलिक रचना

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]

2 thoughts on “निर्भया

  • राजकुमार कांदु

    बहुत सुंदर रचना ज्योत्सना जी !

    • ज्योत्स्ना पाॅल

      सहृदय आभार कांदु जी! आपके प्रोत्साहन के कारण ही ये संभव हो पाया है 🙏🙏🙏

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