हिमाकत में निजामत है
घुमाकर बात को करना, शरीफों की नजाकत है
भले ही बात हो वजनी, मगर उसमें सियासत है
छुरी को जब मिले मौका, हमेशा वार करती है
छुरी मीठी हो या कड़वी, छिपी उसमें कयामत है
बगीचा सींचना होगा, सभी को नेह के जल से
यहाँ जनतन्त्र है जिन्दा, नहीं कोई रियासत है
लगे प्रतिबन्ध हों कितने, बशर तो उफ नहीं करते
चमन को लूटने में भी, उन्हें खासी महारत है
हिमाक़त को हिमाक़त भी, रियाया कह नहीं सकती
खुदा के बाद आका का, यहाँ रुतबा सलामत है
कोई सरनाम होता है, कोई गुमनाम रहता है
सदर के नाम पर होेती, हुकूमत में हजामत है
घिनौने ‘रूप’ को उनके, सुहाना बोलना पड़ता
शराफत है हिरासत में, हिमाकत में निजामत है
— डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’