आदर्श बहू
योगिता ने ज्यों ही समाचार पत्र खोला, उसके सामने समाचार की एक सुर्खी नाच उठी-
”आदर्श बहू बनने के लिए बीएचयू आईआईटी चलाएगा तीन महीने का कोर्स”
योगिता से समाचार तो पढ़ा ही नहीं गया, क्योंकि वह तो अतीत की स्मृतियों में जा चुकी थी.
उसकी शादी को अभी दो ही दिन हुए थे, कि उसे ससुराल में ताने मिलने शुरु हो गए थे.
”अरे, कैसे कपड़े पहने हैं, कोई शऊर ही नहीं है.” कहने वाले उसके जेठ जी थे, जिसकी पत्नी ने भी वैसे ही कपड़े पहने हुए थे.
”बहू, तुम्हारे पिताजी ने अभी तक स्कूटर नहीं पहुंचाया, कह रहे थे दो दिन में आ जाएगा.” ससुर जी की आवाज थी, जो स्कूटर की नगद राशि लेकर भी मुकरने का ढोंग! सास-ननद भी अपने-अपने तरीके से मीनमेख भी निकालती रहीं और उसके मायके से आए सामान को हथियाती रहीं.
वह सुनती रही और सोचती रही, कि शायद उसके पति इस बारे में कुछ बोलकर सबको चुप कराएंगे. आदर्श बहू बनने का हसीन सपना लेकर उसने ससुराल में प्रवेश किया था, पर पांच वर्ष बाद भी उसे ‘आदर्श बहू’ का खिताब नहीं ही मिल सका. अब तो उसका यह सपना भी महज सपना ही बनकर रह गया था. उसने समाचार की प्रतिक्रिया में लिखा-
”कोई यूनिवर्सिटी आदर्श पति या आदर्श ससुराली बनने का कोर्स भी चलाए तो अच्छा है, अन्यथा आदर्श बहू बनने का सपना पूरा नहीं हो पाएगा.”
दो दिन बाद ही इस समाचार पर संशोधनात्मक बयान आ गया था-
”बीएचयू के रजिस्ट्रार डॉ एसपी माथुर ने कहा है कि आदर्श बहू या डॉटर्स प्राइड के नाम से IIT-BHU में न तो कोई कोर्स चल रहा है और न ही यूनिवर्सिटी की ऐसा कोई कोर्स शुरू करने की प्लानिंग है. यंग स्किल्ड इंडिया एक प्राइवेट स्टार्ट-अप है जिसका IIT-BHU से कोई लेना-देना नहीं है.”
शायद यह उसकी और उसके जैसी अन्य भुक्तभोगियों की प्रतिक्रिया का प्रतिफल था.
सच है कोई आदर्श बनना भी चाहे, उसका संकल्प भी हो, पर उसको अनुकूल माहौल ही न मिले, तो आदर्श बनने का सपना कैसे पूरा होगा. आदर्श बहू बनने के लिए पति भी आदर्श हो और ससुराली भी.