ग़ज़ल – शबनमी मोती
दिल ने जब भी, तेरे आने की ख़बर पाई है।
धड़कनों में भी, कोई बर्क़ सी लहराई है।
है तबस्सुम से सजे लब, मगर न जाने क्यूं ,
पलकों पे शबनमी, मोती की घटा छाई है।
यूं तो ख़ामोश लब रहे हैं, एक ज़माने से,
गर समाअत है तो कह दें,जो दिल में आई है।
है फ़िजा संदली गुलों से सज गई राहें
उरूसे -जिंदगी की आज मुंह दिखाई है
कहीं ढल जाए न ये दिल की अंजुमन देखो
अब तो दीदार हो के रुह जगमगाई है
— पुष्पा “स्वाती”
ग़ज़ल में कठिन उर्दू-फारसी शब्दों के हिन्दी अर्थ भी देने चाहिए. जहाँ तक संभव हो इनसे बचें तो अच्छा है.