समय की पुकार
देश की युवा पीढ़ी को समर्पित
” समय की पुकार ”
क्यों खड़ा तू शीष झुकाए
क्यों आँखें हैं बोझिल बोझिल
कंधे क्यों है झुकें -झुकें
क्यों तनु है शिथिल शिथिल ।
पग तेरे क्यों रूके-रूके
साहस पे क्यों पड़ी है धूल
किस दुख में है डूबा हुआ
कौन सी तुझसे हुई है भूल ।
पुकार तूझे रहा है आज
कल की चिंता में न घुल
आज जो न कर पाया कुछ
कल बिधेगी मन में शूल ।
बहता तेरे रगों में जो
रुधिर का है बल प्रबल
भर ह्रदय में श्वास साहस का
कर ले पूर्ण सत्कर्म सकल ।
सुप्त है क्यों आलस्य ओढ़े
तान के सीना भर हुंकार
शिथिल पड़े तन -मन में
जोश,होश का कर संचार ।
भाल तिलक लगा शोणित का
काल की ढाल कर में धर
बढ़े चल निडर तू
चौड़ा सीना तान कर ।
सामने हो प्रलय भीषण
खड़ा हो चाहे पर्वत शिखर
पग में धर त्वरित गति
बढ़ आगे विघ्न ध्वस्त कर ।
लक्ष्य ऊंचा हो गगन सा
दृष्टि बाज़ सी हो उस पर
होगा सफल परिश्रम तेरा
बन धीर,वीर और निडर ।
सपूत है तू भारत माँ का
कंधों पर है भार अपार
रखने ऊंचा माँ का शीष
कर दे जीवन न्योछावर ।
बढ़े चल उस दिशा की ओर
कर्म भूमि रही तूझे पुकार
तज निज स्वार्थ,लोलुप,लालसा
जुट जा करने परोपकार ।
जो बढ़े आज दो कदम तेरे
होंगे पीछे कल हजार
हजार से लाख,लाख से कोटि
मिटके रहेगा दुराचार ।
बहेगी जो तन से तेरे
मांगती माटी स्वेद की धार
प्रेमांकुर तब फूटेंगे एकदिन
भरेगी ह्रदय में शांति अपार ।
ज्योत्स्ना की कलम से
मौलिक रचना