गज़ल
होकर हालात का शिकार बदल जाती है
नीयत का क्या है बार-बार बदल जाती है
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करती है वादे सारी ज़िंदगी के ये दुनिया
चलके साथ कदम दो-चार बदल जाती है
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पहले तो बनाती है आशना हमें अपना
धीरे-धीरे छीन कर करार बदल जाती है
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बुझने से पहले दिया जलता है और तेज़
मंज़िल करीब आते ही रफ्तार बदल जाती है
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सबको मिलता है मौका हमको लूटने का
हर पाँच साल में यहाँ सरकार बदल जाती है
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।