कविता

लोग आजकल

आग की लपटों के नीचे एक राख सी है।
बर्फ पिघल रही है मगर एक भाप सी हैं।।

यूं तो रोशनी हर तरफ उजाला फैलाती हैं ।
लेकिन लोगो के खुले जख्मो को दिखाती है।।

माना ये अंधेरा एक सन्नाटा सा लपेटे है।
पर ना जाने कितने दर्दो को अंदर समेटे है।।

घर की पुरानी दीवारों का रंग कुछ उड़ा सा है।
लेकिन इनमें माँ बाप का आशीर्वाद जुड़ा सा है।।

नए की चाहत में किसी के पुराने सपनो को उधेड़ रहा है।
माँ के हाथों के बुने स्वेटरों को घर से खदेड़ रहा है।।

हरेक दिखावे के लिए बैठा है भगवान की शरण मे आजकल।
घर बैठे माँ बाप के सपनो का हरण कर रहा है आजकल।।

क्या हो गया है लोगो को आजकल।
रोज नए रिश्तों की चाहत में पुराने
रिश्तों की खाल उतार रहा है।।

नीरज त्यागी

पिता का नाम - श्री आनंद कुमार त्यागी माता का नाम - स्व.श्रीमती राज बाला त्यागी ई मेल आईडी- [email protected] एवं [email protected] ग़ाज़ियाबाद (उ. प्र)