कविता

हिंदी माथे की बिंदी

सबको हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाए!

” हिंदी माथे की बिंदी ”

हिन्द की संस्कृति का आधार हिन्दी
भारत मां के माथे की बिंदी ।।

सहज , सरल , सुमधुर है यह भाषा
पूर्ण करें सबकी अभिव्यक्ति की अभिलाषा।।

विशाल नद की भांति है हिंदी भाषा
शाखाएं हैं इसकी शेष सभी भाषा ।।

हिंदी भाषा की सबसे बड़ी है विशेषता
बनाए रखती है यह अनेकता में एकता।।

हिंदी है गंगा , यमुना की कल-कल ध्वनि
जिससे सिंचित होती है हिन्द की भूमि ।।

हिन्दी, हिन्द वासियों का है अभिमान
बिन हिन्दी हिन्द का नहीं कोई मान ।।

आओ मिलकर हिंदी को सशक्त बनाएं
इसकी सुगंध चहुं दिशा में फैलाएं ।।

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल ।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]