कविता

आजादी

“आज़ादी ”

शहीदों ने लिखीं थी आज़ादी
रक्त से अपने,भारत माँ के भाल
नहीं मिली ये आज़ादी हमें
बिना खड़ग, बिना ढाल ।

अनेक मांओं ने खोएं थे
उस लड़ाई में अपने लाल
हुई थी देश की माटी भी
शहीदों के रक्त से लाल ।

क्रांति की उफनती नदी में
बेटियाँ भी कूद पड़ीं थी तब
सही थी अंग्रेजी यातना का दंश
तभी आज़ाद कहलाते हम अब ।

लड़ी थी लड़ाई क्रांति की सबने
मिलाकर कंधे से कंधा
आज़ाद भारत में आज लोग
कर रहे अपराध होकर स्वार्थ में अंधा ।

क्यों रखने पड़ते हैं बेटियों को
भयभीत होकर अपने कदम
आज़ादी की हवा में क्यों
घुंटने लगा है उनका दम ।

ये है कैसी आज़ादी जहाँ
मुक्त हवा में सांस लेना दूभर
खुले में घुम रहे भूखे भेड़िये
अपनी सीना तान कर ।

अशिक्षा का सिंह बैठा है
अपने शिकार को दबोचकर
ज्ञान का दीप बुझ रहा है
आहिस्ता-आहिस्ता जलकर ।

आओ मिलकर करें प्रयास
आज़ादी की लौ को बुझने न दें
फैली जहाँ अज्ञान-तमस की घटा
वहाँ ज्ञान का दीप जला दें ।

मुक्ताकाश में उड़ सके विहग
देश में ऐसी आज़ादी हो
कतर सकें न पंख उसके कोई
बेटियों की बाहें फौलादी हो ।

भूखे को मिले दो वक्त की रोटी
चुल्हा हर घर में जले
सपने साकार हो सभी के
आज़ादी की हवा ऐसी चले ।

उन्नति के पथ पर अग्रसर हो सभी
मिलाकर चलें कदम से कदम
एक ऐसी दुनिया का निर्माण करें
आज़ादी का सही अर्थ समझ सकें हम ।

जयहिन्द!

ज्योत्स्ना की कलम से
मौलिक रचना

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]