आजादी
“आज़ादी ”
शहीदों ने लिखीं थी आज़ादी
रक्त से अपने,भारत माँ के भाल
नहीं मिली ये आज़ादी हमें
बिना खड़ग, बिना ढाल ।
अनेक मांओं ने खोएं थे
उस लड़ाई में अपने लाल
हुई थी देश की माटी भी
शहीदों के रक्त से लाल ।
क्रांति की उफनती नदी में
बेटियाँ भी कूद पड़ीं थी तब
सही थी अंग्रेजी यातना का दंश
तभी आज़ाद कहलाते हम अब ।
लड़ी थी लड़ाई क्रांति की सबने
मिलाकर कंधे से कंधा
आज़ाद भारत में आज लोग
कर रहे अपराध होकर स्वार्थ में अंधा ।
क्यों रखने पड़ते हैं बेटियों को
भयभीत होकर अपने कदम
आज़ादी की हवा में क्यों
घुंटने लगा है उनका दम ।
ये है कैसी आज़ादी जहाँ
मुक्त हवा में सांस लेना दूभर
खुले में घुम रहे भूखे भेड़िये
अपनी सीना तान कर ।
अशिक्षा का सिंह बैठा है
अपने शिकार को दबोचकर
ज्ञान का दीप बुझ रहा है
आहिस्ता-आहिस्ता जलकर ।
आओ मिलकर करें प्रयास
आज़ादी की लौ को बुझने न दें
फैली जहाँ अज्ञान-तमस की घटा
वहाँ ज्ञान का दीप जला दें ।
मुक्ताकाश में उड़ सके विहग
देश में ऐसी आज़ादी हो
कतर सकें न पंख उसके कोई
बेटियों की बाहें फौलादी हो ।
भूखे को मिले दो वक्त की रोटी
चुल्हा हर घर में जले
सपने साकार हो सभी के
आज़ादी की हवा ऐसी चले ।
उन्नति के पथ पर अग्रसर हो सभी
मिलाकर चलें कदम से कदम
एक ऐसी दुनिया का निर्माण करें
आज़ादी का सही अर्थ समझ सकें हम ।
जयहिन्द!
ज्योत्स्ना की कलम से
मौलिक रचना